कर पुष्प चयन तेरी बगिया का, मैं लेने आया हूँ ।
मत मान बुरा ऐ बनमाली, मैं क्षमायाचना कर आया हूँ।।
बगिया तो सारी तेरी , सभी पुष्प भी तो तेरे हैं ।
तेरी ही तुझे समर्पित कर दूँ , बोलो क्या उसमें मेरे हैं??
तेरी चीजें तुझे समर्पित, करता करके खुश हो जाता।
नादानी यह समझ न पाता , क्या इससे हासिल होता??
इस नादानी का बुरा न मानों , क्या करूँ समझ में न आता।
ऐ प्रकृति यह सब कुछ तेरा ,पर वहम मुझे क्यों हो जाता ।।
मानव मन जिसको ढ़ूंढ़ रहा ,पर कहाँ उसे मिल पायेगा ?
वह तो सब में घुला -मिला है , अलग नजर नहीं आयेगा।।
क्यों खोज रहे मेदिर के बुत में ,या मस्जिद की दीवारों में।
जो सर्वब्यप्त है कण-कण में , उन्हें क्यों जाना गुरुद्वारों मेंं।।
क्यों मंदिर ,मस्जिद,गुरूद्वारा जा ,समय को अपना गँवा रहे।
ब्रह्मांड किये है लय जो खुद में ,उसको दरबा में कैद किये ।।
क्यों असाध्य को साध रहे,जिस प्रकृतिको कोई खोज न पाया।
आये चले गये कितनें ज्ञानी, कहाँ आजतक बता ये पाया ।।
यह विषय गहन है, कठिन बहुत है इसका थाह लगाना ।
विज्ञान अभीतक पहुँचा कितना , अभी बहुत ज्ञान है पाना।।
नहीं असंभव होता जग में ,संभव ही सबकुछ होता ।
असंभव बलबुद्धि के आगे ,अपनें घुटने टेक देता ।।
करोगे कर्म अतिउत्तम, तो वह दौरा आयेगा ।
जहाँ कहीं भी तुम जाओगे , वह तो स्वयं पहुँच जायेगा।।