दिये हो तुम सभीको दिल , लगानें क्यों नहीं देते?
लगा लेता कभी कोई , जुदाई क्यों दिला देते ??
प्रकृति यह देन तेरी है , तुम्हीं सब को बनाई है ।
जगत की चीज है जितनी , सब तेरी खुदाई है ।।
जहाँ जो कुछ बनाई है , उपज तेरे ही है दिल का ।
भला बोलें , बुरा बोलें , सभी कुछ तेरे ही मन का ।।
दिल में भावना उठता किसी का,क्या वह नहीं तेरा?
खड़कता है अगर पत्ता, बिन ईच्छा ही क्या तेरा ??
जगाते प्रेम क्यों दिल मे , मिटाते क्यों उसे खुद ही ।
मिटाना ही अगर था आप को,बनाया था ही क्यों खुद ही।।
हँसाते आप ही सबको, रुला खुद आप ही देते ।
हँसा करके, रुला करके, आप ही लुत्फ हैं लेते।।
बालक ही समझ कर आप तो, सबको रुला देते ।
रुलाकर आप ही उससे , कभी कुछ लुत्फ ले लेते।।
बुरा गर मानता बालक ,ये उसकी नासमझ कहिये ।
बात ये बालपन की है , अन्यथा कुछ नहीं कहिये ।।
बच्चे भूल भी जाते , नहीं दिल में लिया करते ।
जिद करते कभी थोडा, कभी फिर मान भी जाते।।
जगा कर प्रीत दिल में आप , ही उसको मिटा देते ।
खिलौना से रिझा बच्चे से , उससे छीन भी लेते ।
रोना अब तो बच्चे को , बडा़ ही लिजिमी होता ।
उसे तो खेलते ही खेलते , रोना तभी पड़ता ।।
यह खेल दुनियाँ का , बडा़ रोचक हुआ करता ।
दुनियाँ के सारे लोग को ही , खेलना पड़ता ।।
रूलाते प्यार में ही ,प्यार से , रोना तो उसे पडता ।
झेलता कष्ट वह थोड़ा ,मजा पर आपको मिलता ।।