चाँद को थोड़ा उछल कर, हम मजे से छू चुके अब।
अपना ही साधन को लगा कर,हम वहाँ पर जा चुके अब।।
होड़ में जितने खडे़ हैं ,हम वहाँ से बढ़ गये अब ।
मार्ग की बाधाओं को , अच्छी तरह से गये समझ अब।।
हम खुद बना सकते सभी कुछ ,सिद्ध मैने कर दिखाया।
क्षमता बहुत कुछ है मेरी, संसार को कर के दिखाया।।
अग्रणी हम ज्ञान में थे ,अग्रणी फिर आज भी हम ।
गये पिछड़ थे हम कभी , पर फिर से आगे हो गये।।
विश्वगुरू थे हम कभी , प्रयास फिर हम कर रहे ।
रफ्तार तो हमनें पकड़ ली , बढ़ते उधर ही जा रहे।।
हासिल किये बिन रुक न सकता,मीशन मेरा चलता रहे।
रफ्तार भी कमने न पाये , ध्यान यह हरदम रहे ।।
विश्व पूरा एक दिन , परिवार एक बन कर रहे।
अर्जित किये गये ज्ञान से , सत्कर्म तब होता रहे।।
लोभ ,ईर्ष्या ,डाह ,अवगुण, फिर नहीं आये कभी ।
आपसी सद्भावना में ,ह्रास न आये कभी ।।
राह गौतम ने दिखाया ,हमलोग सब उस पर चलें।
सब का भरा दिल प्रेम से हो , बन्धुत्व कायम हम करें।।
श्रेष्ठ मानव जीव में था , श्रेष्ठ ही बन कर रहे ।
करुणा , दया का भाव अपना , वह लुटाया ही करे।।
प्रेम की दरिया बहे , लगाते रहे गोते सभी ।
दिल में भरा हो अमन -चैन , घृणा नहीं छूवे कभी।।
तब जिन्दगी क्या जिन्दगी, होगी जरा सोचें इसे।
क्यों प्रकृति मानव बनाई, शायद समझ पाओ इसे ।।