ऐ जादूगर कुछ खेल अपना ,आज तुम हमको दिखा दो।
अपनी सफाई हाथ की , करके हमें थोडा दिखा दो ।।
डुगडुगी अपनी बजा दो , दौड़े सभी आ जायेंगेंं ।
बृद्ध ,बालक , नारी -नरों की , भीड़ सी लग जायेंगे।।
करके सफाई हाथ की , करिश्मा जरा अपना दिखा।
किंकर्तव्यविमूढ़ कर दो ,चीज कुछ ऐसी दिखा।।
भर दो नया कुछ जोश उनमे , नाचनें लग जायें सब ।
परेशानियाँँ कुछ मन में हो तो , दूर ही हो जाये सब ।।
उर्जा नया पैदा करा दो , क्लान्ति मन का दूर हो ।
जो भी दुखी होकर पड़े हों , हँसनें को मजबूर हों।।
ऐ सृजनकर्ता जादूगर , एहसान इतना तो करो ।
अपने सृजन का कुछ करिश्मा, भी तो दिखलाया करो।।
आवाज सुन तेरी डुगडुगी की ,लोग दौड़े आ गये ।
तमाशा शुरू होने से पहले , भागे हुए सब आ गये।।
यूँ खेल तो रूकता न तेरा , हरदम चला करता है ये।
पर कौन है ऐसा मदारी , जो खेल दिखलाता है ये ।।
खेल जो छिपकर खेलाता, आता नजर वह है नहीं ।
करिश्मायें उनकी हर जगह , पर स्वयं दिखता है नहीं।।
अद्भुत मदारी ,इस तरह का , देखा न कोई आजतक।
करीब रहकर दूर लगता , सुनते रहे हैं आजतक ।।
आही गये तो कुछ दिखा दो ,कुछ तो अजूबा देख लें ।
सुनते सुनाते लोग से पर , अपनी ही आँखों देख लें ।।
तुम कुशलतम है मदारी , अद्भुत तेरा संसार है ।
सारे कणों में तुम बसे हो , सारे कणों से प्यार है।।