दिल मे भरी है लाख बातें, पर बयाँ किसको करूँ ?
सम्हाल रखा हूँ जतन से , अब और आगे क्या करूँ??
जिन्दगी आगे पड़ी है , अभी बात कितनी आयेगी ।
यह भी हो सकता जरूरत , ही न उसकी आयेगी ।।
दफन भी हो गये हैं कितने , और बाकी हैं पड़े ।
क्या पता किसकी जरूरत , कब किसी को आ पड़े।।
दफन हो कर लुप्त हो गये , राज कितने दब गए ।
जिस बात की थी शख्त जरुरत, साथ कितने गये चले।।
जनश्रुतियों से काम चलता , लिपियाँ न हम थे जानते।
गूढ़ कितने दफन हो गये ,ये बात सब हैं मानते ।।
विज्ञान में हम बढ़ रहे , कुछ खोज हमनें कर लिया ।
खोज कर हम इस समस्या ,पर विजय तो कर लिया।।
मुट्ठी में हो गयी आज दुनियाँ ,चन्द दिनों की खोज में ।
लाभान्वित हम हो रहे , संचार की इस दौड़ में ।।
आसान कितना कर दिया , नजदीक हम कितने हुए।
संसार की घटनाओं से ,दिन -रात वाकिफ हम हुए।।
संसार की घटनाएं सारी , घर में ही बैठे जानते ।
जानते केवल नहीं, नजरों से अपनी देखते ।।
अब छिपी कुछ भी नहीं , रहस्य से वाकिफ हुए ।
रहस्य का पर्दा पडा था , जो दूर काफी हो गये ।।
विज्ञान बढ़ता जा रहा नित , खोज नये होते गये ।
हम जिन्दगी की खुशियाँ , आसान करते गये चले ।।
खोजना तो शेष है , अब तक न जो खोजे गये ।.
अभियान है जारी निरंतर , जो भी बाकी रह गये ।।