अगला मुद्दा विश्वयुद्ध का , पानी ही है हो सकता ।
ये बातें व्यक्त किया जिसने,कथन सत्य उसका लगता।।
बनकर वाष्प मही से जल , जब आसमान में जाता।
बादल बनकर आसमान में ,सघन रूप से छा जाता ।।
फिर पानी ककी बूँदें बनकर , धरती पर गिर जाता ।
यही क्रिया पानी गिरने का ,बारिश है कहलाता ।।
प्रकृति का यह काम मही पर ,निरंतर ही चलता रहता ।
सारी ऋतुएं भी अपने ढंग से ,आता और चला जाता ।।
यह चक्र सदा चलता रहता , प्रकृति ने इसे बना रखी ।
बडे़ ढंग से नियमित अपने ,कर्मों को करती रहती ।।
बहुत ध्यान दे कर प्रकृति ने ,यह संसार बनाई है ।
शुद्ध हवा औ शुद्ध जलों का , उद्गम वही बनाई है ।।
मानव नामक जीव धरा पर ,बुद्धि ज्यादा दे रच डाला ।
सारे जीवो से अधिक बहुत , ज्ञानी इसे बना डाला ।।
प्रकृति के हर कामों में , लगा ब्यवधान यही करनें ।
अपूर्ण ज्ञान ही पाया था , पर लगा उधम वही करनें।।
प्रकृति का दोहन करनें में ,किया न तनिक रहम हमनें।
फैलाया प्रदूषण जमकर, अरि सा ब्यवहार किया हमनें।।
करनी जो हमनें कर डाली , परिणाम भुगतना ही होगा।
‘गलत काम का गलत नतीजा, हमें झेलना ही होगा।।
बहुत बिगाड़ा ,मत और बिगाड़ो ,आगे जरा सम्हल जा।
गलत करना भी आगे छोड़ो ,बिगड़ों को राह बता जा ।।
उपयोग करो पानी का हरदम, अमृत इसे समझ कर।
नहीं ब्यर्थ में इसे बहाना , या प्रदूषित ही कर कर ।।