प्रेम भरा होता दिल कवि का , घृणा तनिक न होता।
कोमल भाव भरे हैं होते , अतिसय निर्मल होता ।।
कहते समाज का दर्पण होता , प्रतिविम्ब इसी में दिखता।
दर्पण केवल नहीं, भविष्य कैसा होगा वह दिखता।।
दर्पण तो दिखलाता केवल , बाहर से जो दिख पाता ।
अन्दर क्या क्या भरा पड़ा , उनको कहाँ नजर आता।।
शूक्ष्म दृष्टि होती उनकी , अति दूरदृष्टि भी होती ।
सामान्य जनों को नजर न आता,पर उन्हें दिखायी देती।।
पहुँच वहाँ भी हैं जाते , ज हाँ नजरें नहीं पहुँच पाती।
कल्पना दृष्टि से उनको , चीजें सभी झलक जाती ।।
कवि कल्पना की नजरों से ,सबकुछ देख लिया करता।
उन्हे पेड़ की छावों में भी ,नल दमयन्ती दिख जाता ।।
कभी उड़ाने भर लेता है ,सूर्य ,चन्द्र ,ग्रह-उपग्रह का ।
अंतरीक्ष में रहनेवाले , छोटे-बड़े नक्षत्रों का ।।
दिशानिर्देश कराते आये , बडे़-बडे़ क्षत्रप का ।
गंभीर समय में पथ-निर्देशन , किया है बडे़ बड़ों का ।।
काम कवि का सदा रहा है , उत्तम राह दिखाना ।
शक्ति निहित हो जिनमें उनको ,नीतिगत राह बताना ।।
सदा सदा से तब के कवि गण ,अपना धर्म निभाया ।
पड़ी जरूरत तो उन्होंने, अच्छा सा मार्ग दिखाया ।।
धर्म सदा से रखा इसनें , कुछ समाज को देना ।
कभी प्रयास नहीं करता वह,कुछ समाज से लेना।।