ऐ पथिक यह तो बता दे , है तुझे जाना कहाँँ ?
कोई है तेरा जो पथ निहारे ,दे बता वो है कहाँ ??
दिन रात चलते जा रहे ,अविरल बिना विश्राम के ।
क्या पग तेरे थकते नहीं , जरूरत नहीं विश्राम के ??
शजरों की ठंढी छाँव में , रुकते न पल भर के लिए।
लेते नहीं क्यों झपकियाँ ,.अपनी ही सेहत के लिये ।।
भागते ही जा रहे , लेते नहीं विश्राम क्यों हो ?
हो मुसाफिर तुम कहाँ के , यह भी बताते क्यों नहीं हो??
गये भटक जो पथ कहीँ , पहुंच कहाँ पर जाआगे?
अपनी जरूरत की जगह पर , क्या पहुँच भी पाओगे??
हम सब मुसाफिर पर अजूबा, अनजान पथ पर चल रहे ।
चौरास्ता आता कहीं , भटके तो भटके जा रहे ।।
कोई बताता राह पर , अनभिज्ञ खुद रहता वही ।
अटकलों से सोंच कर खुद , पथ बताते हैं वही ।।
देखा किसी ने है नहीं , बस अटकलों की दोड़ है ।
ढोंगियों की बाढ़ हो गयी , बनता वही शिरमौर है।।
ढोंग रच कर नित नया , फाँँसते है जाल में ।
दिखला उन्हें कुछ सब्जबाग, लेते फँसा ही जाल मे।।
पथ बताता है न कोई ,सब लगे हैं फाँसने में ।
पथ तो पता खचद ही नहीं ,आता मजा है फांसने में।।
चींटियों की पंक्तियों सा , बस चले हम जा रहे ।
अनभिज्ञ राहोंं पर बढे , अनभिज्ञ जगह पर जा रहे।।
संसार के सारे पथिक का , आज ऐसा हाल है ।
गण्तब्य तक मालुम नहीं , क्या नहीं ये कमाल है।।
मानव ही रच कर ढोंग नित , मानवों को ठग रहे ।
चमत्कार का रच ढोंग नव , अपनों को अपने ठग रहे ।।
बहुत अच्छा लिखा अपने सर
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बहुत बहुत धन्यवाद.
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जी शुक्रिया🙏🙏
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