कृष्ण तुम आये न होते , क्या हाल होता लोग का ।
आतंक था सर्वत्र छाया , रहता बना भय कंस का।।
एक नाग काला कालिया भी ,आतंक यमुना का बना।
जो जीव जाता था नदी मेंं ,आहार सब उसका बना ।।
कालिया को नाथ कर , भयमुक्त यमुना को किया।
तरणी तनूजा के तटों पर , बहार नव फिर से किया।।
उठा गोवर्धन को , बचाया डूबते सब लोग को ।
इस्तेमाल छतरी कर दिखाया, नासमझ सा ईन्द्र को।।
द्रौपदी का चीर हरण , था जब सभा में हो रहा ।
बचाई उनकी आवरू , कर महसूस उनके दर्द को।।
गोपियाँ बेचैन सी , रहती इन्हीं की याद मे ।
बेचैन दिल को चैन दे , करते शमन उस दर्द को।।
कृष्ण के ही रंग में , हैं रंगे सब आज तक।
भूलना नहीं चाहते ,उनके दिये गये दर्द को ।।
नाग काला कालिया , बदला है अपनें रूप को ।
रूप को अपना बदल , अपना लिया विद्रूप को ।।
पहचान लेना भी उन्हें, मुश्किल अति अब हो गये।
कब कौन सा वह रुप लेगा, कहना कठिन है बात को ।।
कान्हा तुझे ही स्वयं आ ,समझाना पड़ेगा बात को।
मर्ज अब संगीन हो गये, निपटाना पड़ेगा आप को ।।
जल्द कर ,कर देर मत , मर्ज बढता जा रहा ।
बढ़ गये गर और ज्यादा , मुश्किल बढ़ेगा आप को।।