सुनते बहुत कम लोग बस, खुद ही सुनाना चाहते ।
शिकार जो रहते वहम का , श्रेष्ठ खुद को मानते ।।
पर कुछ बहुत थोड़े सदा , सबको उचित सम्मान देते।
श्रद्धा सुमन गुरु के चरण पर, धर हृदय से मान देते ।।
बर्तन खनकते हैं अधिक, होते जो खुद फूटे हुए ।
टपकता डाल नीचे पेड़ से , रहते हों जो टूटे हुए ।।
जो गुण से हों भरे होते , बहुत गंभीर है होते ।
खाली पात्र जो होते , अधिक खनका वही करते ।।
आवारा दौड़ते कुत्ते , बडे ही शोर हैं करते ।
पर जो पालतू होते , वे भौका कम किये करते।।
भरा जो दंभ हैं करते , बडे कमजोर हैं होते ।
छिपाने के लिये कमजोरियाँ, बातें अधिक करते।।
लेने का सहारा झूठ का , मजबूर हो जाते ।
छिपाने के लिये एक झूठ को, झूठा ही बनजाते।।
बोलकर ब्यर्थ की बातें , नजर से लोग का गिरते ।
नहीं कोई फायदा मिलता , भले नुकसान ही करते।।
जिन्हें पर लत ये लग जाती , हटाये भी नहीं हटती ।
कथन ये सत्य सा लगता ,’इलाज आदत की नहीं होती’।।
खुद के बनें ही जाल में ,वह खुद फँसा रहता ।
निकलने का अथक प्रयास ,भी तो ब्यर्थ हो जाता ।।
लेकर वद्वजन से ज्ञान , हासिल लोग को होता ।
सुनाने से सदा बेहतर ,लोग से सुनना होता ।।