बापू, एक बार तुझे , धरती पर आना होगा ।
समस्या बढ़ रही थोडी , उसे सुधारना होगा ।।
ईशा की ही जरूरत है , बुद्ध की भी जरूरत है ।
भरे दोनो का गुण तुममें, तैरी तो श्ख्त जरूरत है।।
तुम तो आये थै शायद , यही सब काम करने को ।
त्रसित थे लोग जो मही पर , उन्हीं को त्राण देनें को।।
बहुत कुछ तुम किये पूरा , बाकी था बचा थोड़ा ।
एक सिर फिरा आ कर , नहीं होने दिया पूरा ।।
दिया कर छेद छाती को , तुम्हें पिस्टल की गोली से ।
ईशा को छेद डाला था , दिवार मे ठोक काँटी से ।।
अधूरा छोड़ अपना काम , जन्नत को पड़ा जाना ।
जन्नत को जरूरत थी ,इनसे कुछ काम निपटाना।।
जरूरत आ पड़ी फिर आप की ,बिना तेरा नहीं सम्भव।
बचा जो काम था करना , तुम्हीं से सिर्फ है सम्भव ।।
कृपया एक बार आकर , आप दिक्दर्शन करा दें फिर।
बैठी है जगत बारूद पर , उससे बचा लें फिर ।।
धधकती जा रही थी , विश्व-युद्ध की अग्नि गुस्से सा ।
अहिंसा -मार्ग दिखला कर ,दिया कर शमन गुस्से का ।।
शान्ति का मसीहा बन , किया उपकार मानव को ।
“अहिंसा परमों धर्म ” का दिया, एक मंत्र मानव को।।
तुमने कर दिखाया जो , मानव कर नहीं सकता ।
थे मानव से बहुत उपर , ‘सिर्फ’ मानव हो ही नहीं सकता।।
तुझे जो दिल से सोंचा है , तुझे भगवान माना है ।
गौतमबुद्ध, ईशा मसीह के , समकक्ष माना है ।।
तुमने जो दिखाया रास्ता , सन्मार्ग का है पथ ।
सत्य , अहिंसा , ईमानदारी , से भरा यह पथ ।।
विश्व भी अब लग गया, समझने मार्ग क्या इनका।
विश्व मे शान्ति देगा यही , जो मार्ग है इनका ।।
शान्ति के पुजारी तुम ,तुझे जग नमन है करता ।
समझता जा रहा जो करीब से ,सब अमल है करता ।।