घूंघटों की ओट में.

घूंघटों की ओट में , मैं एक अनोखा चांद देखा ।

झांकती काली घटा से , दामिनी एक बार देखा।।

आंखें तरसती रह गयी , फिर से छटा को देख पाऊं।

तृप्त आंखों को करूं , बेचैन दिल में चैन पाऊं।।

घड़ियां अनेकों गई गुजर , आई नजर नहीं चांदनी ।

बेचैनियां बढ़ती गई ,पर दिखी नहीं कामिनी ।।

दिल तड़पता रहा गया , बेचैन होता मैं गया ।

मुश्किल क्षणों से था गुजरना , जीना भी दूभर कर गया ।।

छा गयी उनकी छबि , दिल की मेरे गहराई में ।

देखें जिधर ,आती नजर , तूं सर्वदा तन्हाई में ।।

ओझल कभी होती नहीं ,रहती नजर के सामने ।

काली घटाएं झेंपती , तेरी गेसुओं के सामने ।।

मुखड़ा तुम्हारा देख कर , चांद कुछ ऐसा गड़ा ।

शर्म के मारे बेचारा, ढ़ूढे नजर फिर न पड़ा ।।

छिपने छिपाने का मजा , आता सदा हर लोग को।

होती है काफी एक झलक , मन मोह लेता लोग का।।

ढूंढने में जो मजा , मिलता , कहीं मिलता नहीं ।

इन्तजार की घड़ियां अलौकिक , जो मिलन देता नहीं।।

तकरार में जो रस छिपा , मिलता मधुर आनन्द जिसमें।

नमकीन ही अनुकूल करता ,रसना को मिलता स्वाद जिसमें।।

उत्प्रेरक कराता प्रतिक्रिया, पर स्वयं कुछ करता नहीं।

रहता वहीं चुपचाप बैठा ,करवाता यही करता नहीं।।

घूंघटों की ओट से जो , वह अनोखा चांद देखा ।

घर कर गयी मेरी जिन्दगी मे , ऐसा अजूबा चाँद देखा।।

घर कर गयी मेरी जिंदगी में , ऐसा अजूबा चांद देखा।।