खाते ही अक्सर चोट हैं, अपने सगे ही लोग से ।
वेदना होती अधिक, अपनों की दी हुई चोट से ।।
है यह जमाने का असर , क्या धूर्तता बढ़ गयी यहां ।
कराहता ईमान अब है , धूर्तो की ही चलती यहां ।।
चोर और बेईमान जन का , सम्मान होता आज है ।
जिनमें बची ईमान उनको , पूछता अब कौन है ।।
उल्टा पवन ही बह रहा , बेईमान पैदा हो रहे ।
सज्जनों का आज जीना , दूभर अति ही हो गये ।।
कलियुग जिसे हैं लोग कहते ,शायद वही है आ गया ।
हुई हंस की हालत बुरी , कौवा को मोती मिल गया ।।
सराहना करते उन्हें , अघाते तनिक नहीं लोग हैं।
कहते ‘बड़ा वह आदमी ‘है , रिश्र्वत कमाता रोज है।।
रिश्र्वत कमाना लोग के , दिलों को ऐसा भा गया ।
ब्यभिचार , चोरी और डकैती , व्यवसाय में अब आ गया।।
दिवालिया बन रही गया , मानसिकता ही देश का ।
माफिया को कर चयन , नेता बनाते देश का ।।
हम डुलाते पूंछ अपनी , देते वे टुकड़े फेंक कर ।
बेशर्म सा हम नमन करते , उन्हें दूर से ही देखकर।।
संख्या उसी की बढ़ गयी , उनका ही चलता राज अब ।
किनको बुरा अब बोलियेगा , उनको दिया सरताज अब।।
ईमान अपना बेंचकर , बदतर किया जो काम तुमने।
तैयार रह खुद भोगने को , जितना किया कूकर्म तुमने।।
अपने किये कूकर्म का फल , भोगना तुमको पड़ेगा ।
मौजें उड़ाया है उड़ाया है ,उड़ा ले , किये का भरना पड़ेगा।।