चतुर्थपन इस जिंदगी का , जिसको बुढ़ापा लोग कहते ।
देखकर कितनें बसंत को , इस मुहीम पर आ पहुंचते ।।
दुख-सुख की घड़ियां पार करते, विघ्न से लड़ते झगड़ते।
झेलते बाधायें कितनी ,इस हाल पर हैं तब पहुंचते ।।
अम्बार लेकर अनुभवों का , गम -खुशी को झेलते ।
विवेक को अपना लगा , परिस्थितियों से जूझते ।।
पथ खोजते हिम्मत लगाकर , बाधाओं को भिड़ कर भगाते ।
प्रसस्थ अपना पथ किते ,इस जगह तक पहुंच पाते ।।
खुदखोज कर जो पथ बनाते ,नयी पीढी को उसपर चलाते।
पथ सुगम उनको बता कर, जीवन सुगम उनका बनाते ।।
रास्ता को खोजकर खुद , मार्ग दर्शन हैं कराते ।
लोग नये अभियान अपना , आगे यहीं से हैं बढ़ाते ।।
विज्ञान को किसने बनाया, सोचें जरा वे कौन हैं ।
पूर्वजों की देन नहीं क्या , बोलें लिये कर्मों मौन हैं??
जिसने तुझे चलना सिखाया , यह तो बता दो कौन है?
तुमको यहां तक कौन लाया ,यही ‘बृद्ध’ नहीं तो कौन है??
अपना सभी कुछ दे तुम्हें, लायक बनाया कौन है?
खुशियां सभी तुम पर लुटाया ,यह तो बताओ कौन है??
जिसने बनाया योग्य तुमको , उसके लिये तुम क्या किया?
जिसने लगा दी ज़िन्दगी , उसके लिये भी क्या किया??
उस वृद्ध का संबल बना क्या ,उसके लिये तुमने किया क्या?
वृद्धाश्रम में डाल उनको , अपना निभाया धर्म है क्या ??
तुम इस जगह जब आओगे, करता यातना सह पाओगे?
सब झेलना तुमको पड़ेगा , क्या नहीं पछताओगे ??
ईमान अपना ठीक कर लें ,पथ गये भटक पथ ठीक कर लें।
सुधार पथ जो गये भ्रमित हो ,दिशा गमन का ठीक कर लें।।
सम्मान जिसको चाहिए, अपमान उनको क्यो किये?
अबभी सम्हल जा पथ पकड़ ले ,इसमहाभूल को क्यों किये?