सुन मेरे मनमीत .

आज न तुमको जाने दूंगी ,सुन मेरे मनमीत ।

नजानें कब चुरा लिया तूं , मेरा भोला चित्त ।।

बिवस , बेचारी ,बनी बावरी , तेरा पंथ निहारूं नित ।

बीत रहे कैसे दिन-रैना , बिन तेरे, मेरे मनमीत ।।

तुमसे ही हूं , जो कुछ भी हूं , तुम मेरे उर्जा के श्रोत ।

बिना तेरे एक लाश हूं चलता, समझें जिन्दा या समझें मृत।।

सिर्फ तुम्हींपर टिकी हुई है, जीवन के मेरे सारे गीत ।

वीणा की तारें भरती रहती , इन रागों में मधुर संगीत ।।

मेरी पायल तुझे पुकारे , सुन उनका झंकार ।

छलक रहा मेरे घूंघरु से , मादक , मधुर, मधु का धार ।।ुु

वह भी बस तेरे खातिर ही ,उसपर केवल तेरा अधिकार।

सिवा तेरे कोई अन्य न इसका, बन सकता उसका हकदार।।

तुझे समर्पित सब कुछ अपना ,बस केवल तुझको ही ।

रहा नहीं अब कुछ भी मेरा ,किया समर्पण ज्योही ।।

अस्तित्व नहीं अब अलग हमारा, सब साझा अब हो गये।

अलग अलग अब रहा न कुछ भी , ‘एक’ मिल दोनों होगये।।

समर्पण ही जीवन है होता ,जीवन का आधार यहीं ।

जहां समर्पण नहीं , वहां तो , जीवन का आधार नहीं।।

किया समर्पण ,कर हम खुश हैं , मैं इसे बताते देता हूं।

जुदा कभी ना होंगे दोनों , होंशों हवाश में कहता हूं।।

आज न तुमको जानें दूंगी, ऐ मेरे मनमीत।

रहूं सुनाते दिल की अपनी ,प्यार भरी कुछ गीत।।

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