पल-पल निकलते समय ,बस देखते हम यह गये।
एक मूकदर्शक सा बना ही ,बस अकेला रह गये ।।
उम्र की दहलीज पर, रहते खड़े हरलोग सब ।
समय गति से बढ़ रहा , अनवरत रुकता ही कब??
रोके नहीं रुकता समय, करता नहीं रफ्तार कम ।
कोई चाहकर ले रोक इसको, करता किसी में है ये दम।।
ख्याल सब का है इसे रखता नजर हर लोग पर ।
कोई अछूता है न जग में ,जिस पर न उसकी हो नज़र।।
रंक और राजा बना कर, राजसिंहासन बिठा दे
सिंघासन किसी छीनकर ,रंक पलभर में बना दे।।
ताज दे सकता यही तो , ताज ले सकता यही ।
घटनायें कितनी घट गरी , इतिहास बतलाता यही ।।
कोई कल्पित-कहानी यह नहीं, घटनाएं बिलकुल सत्यहै।
पढ़कर सड़क की रौशनी में ,करता बना करता असत्य है।।
घटनायें कितनी हो गयी ,होती ही रहती आज-तक।
बना देना या मिटाना, करता समय ही आजतक।।
पकी मछली तैर जाती , है नदी की धार में।
तैरना जिसको न आता, नहीं डुबते मझधार में।।
जहां सोच मानव का न जाता,खुद पहुंच जाता कभी।
जो देखता कभी स्वप्न सा, स्तरीय हो जाता कभी ।।
स्वप्न भी साकार हो कर , जिन्दगी का स्त्रोत बनता।
समय का प्रभाव से तो ,कल्पना भी स्तरीय बनता ।।
जो समझ से परे होते, काल्पनिक कहते उसे ।
कल्पना कोड़ी बताकर , टाल देते हैं उसे ।।
पर समय आता कभी, आती समझ में बात सारी ।
कल्पना जिसको कहा था ,उनकी कथन थी स्तरीय सारी।।
ऐसा समय भी आ सकेगा , सब सत्य से वाकिफ रहें ।
नासमझ में सत्य कोभी ,असत्य ही कहते रहें ।।