तेरी रचना को क्या बोलूं

प्रकृति तेरी रचना को , बता क्या बोलूं ।

अथाह को थामना चाहा , बता कैसे भला थाहूं।।

अथाह सागर में तेरा , छोटा सा तिनका हूं कहीं ।

मेरी विसात ही क्या , आता नजर साहिल भी नहीं।।

कहां जाना है मुझे , मुझे पता भी ही नहीं ।

जहां तूं चाहता मुझको , बहा देता था वहां ।।

मेरे जीवन का ,तेरे हाथों के सिवा , पतवार कहां?

तेरी मर्जी के बिना , मुझे और कहीं जाना ही कहां??

फिक्र करना भी यूं ही , मेरी फितरत में नहीं ।

फ़िक्र करने की मुझे , है जरूरत भी नहीं ।।

जहां तूं चाहता , मुझे ले जा तूं वहीं ।

तुमसे कोई आरज़ू , या कोई शिकवा भी नहीं।।

तेरा उत्पाद हूं मैं , चलती भी बस ,तेरी मर्जी ।

न कोई फिक्र मुझे , न कोई अपनी मर्जी ।।

तेरे सिवाय मुझे , आता नहीं कुछ भी है नजर ।

जिधर भी देखता तूं ही तूं , आते हो नज़र ।।

सिर्फ मैं जानता , जो तुम मुझे बताते हो ।

सिर्फ देखा भी वही , जो कुछ मुझे दिखाते हो।।

नहीं कुछ चाहिए तुझको , सिवा जो देते मुझे ।

तुम्हीं तो देते सदा , जो पड़ती , जरूरत है मुझे।।

मुझे न चाहिए , जो भी दिया उससे ज्यादा ।

बची न कामना मेरी ,न रहा ही इरादा ।।

कुछ नहीं चाहिए मुझको , न जरूरत ही बची ।

प्रकृति तूने दिया सब कुछ , तूं सब कुछ ही रची ।।

खुशी या गम .

दिल में भरे गम या खुशी , आंखों ने छिपा ली होती।

राज तो राज ही रहता , गर जुबां फिसली नहीं हौती।।

गमों को दाबकर रखना , बहुत आसान नहीं होता।

खुशियों को नहीं बांटें , बड़ा परेशां किया करता।।

खुशी हद से अधिक ज्यादा ,या गम भी बहुत ज्यादा।

जाहिर किया करती छलक , आंखें अधिक ज्यादा ।।

मामला बड़े दोनों ही , संगीन हो गयी होती ।

अब्यक्त रखना भी , कठिन हो गयी होती ।।

यही जो जिन्दगी होती ,मिलती यही जीवन का मजा ।

लिया न लुफ्त हो जिसने ,समझा नहीं जीवन का फिजा।।

जो बौरा डूबते तह तक , रत्न कुछ खोज लेते हैं।

गूढ़ जिन्दगी जीने का , कुछ पा ही लेते हैं ।।

खुशी या गम ही तो , जीवन के दो किनारे है ।

गले मिला जो चले दोनों से , चतुर हैं न्यारे हैं।।

काश दोनों को , एक नजरों से ही देखी होती ।

खुशी या गम को , तरजीह बराबर दी होती ।।

आज का ये दिन , जीवन में न आया होता ।

गम भी तो आज नहीं , सताया होता ।।

खुशी या गम तो , जीवन के दो किनारे है ।

एक दूजे का , पूरक हैं, और सहारे हैं ।।

जिसने गम देखा नहीं , उसे खुशियों का एहसास कहां?

खुशी करता चीज है होती , सुनी है , महसूस कहां ??

किये का भरना पड़ेगा.

खाते ही अक्सर चोट हैं, अपने सगे ही लोग से ।

वेदना होती अधिक, अपनों की दी हुई चोट से ।।

है यह जमाने का असर , क्या धूर्तता बढ़ गयी यहां ।

कराहता ईमान अब है , धूर्तो की ही चलती यहां ।।

चोर और बेईमान जन का , सम्मान होता आज है ।

जिनमें बची ईमान उनको , पूछता अब कौन है ।।

उल्टा पवन ही बह रहा , बेईमान पैदा हो रहे ।

सज्जनों का आज जीना , दूभर अति ही हो गये ।।

कलियुग जिसे हैं लोग कहते ,शायद वही है आ गया ।

हुई हंस की हालत बुरी ,‌ कौवा को मोती मिल गया ।।

सराहना करते उन्हें , अघाते तनिक नहीं लोग हैं।

कहते ‘बड़ा वह आदमी ‘है , रिश्र्वत कमाता रोज है।।

रिश्र्वत कमाना लोग के , दिलों को ऐसा भा गया ।

ब्यभिचार , चोरी और डकैती , व्यवसाय में अब आ गया।।

दिवालिया बन रही गया , मानसिकता ही देश का ।

माफिया को कर चयन , नेता बनाते देश का ।।

हम डुलाते पूंछ अपनी , देते वे टुकड़े फेंक कर ।

बेशर्म सा हम नमन करते , उन्हें दूर से ही देखकर।।

संख्या उसी की बढ़ गयी , उनका ही चलता राज अब ।

किनको बुरा अब बोलियेगा , उनको दिया सरताज अब।।

ईमान अपना बेंचकर , बदतर किया जो काम तुमने।

तैयार रह खुद भोगने को , जितना किया कूकर्म तुमने।।

अपने किये कूकर्म का फल , भोगना तुमको पड़ेगा ।

मौजें उड़ाया है उड़ाया है ,उड़ा ले , किये का भरना पड़ेगा।।

मित्रता

मित्र सच्चा गर मिले तो , मित्रता अनमोल है ।

हीरे , जवाहर , मोतियों से ,अधिक इसकी मोल है ।।

बना नहीं अबतक तराजू , मित्रता को तौल दे जो ।

ना बाट इतना है बना , इसके वजन को तौल दे जो।।

बेजोड़ होती मित्रता , जोड़ इसका है नहीं ।

बराबरी इसकी जगत में , कोई कर सकता नहीं।।

मित अनेकों तो जगत में , पर श्रेष्ठ इनमें कौन है।

उतरे कसौटी पर खड़ी जो ,पवित्र पावन कौन है ।।

उपर बहुत मानव की श्रेणी , से रहा इन्सान होगा ।

मानव उसे कहना उचित क्या ,साक्षात वह भगवान होगा।।

कृष्ण-सुदामा की जगत में , दोस्ती मशहूर है ।

युग -युगों से आ रही , मिशाल ये बेजार है ।।

संसार में जब तक रहेगा , गाथा अमर उसका रहेगा।

जुबान पर हरलोग की , मिशाल बन छाया रहेगा ।।

मित्रता की बात होगी , लोग उसका नाम लेंगे।

क्या महत्ता दोस्ती की ,लोग इसको जान लेंगे ।।

लें लें अगर थोड़ा सबक , कल्याण होगा लोग का ।

इन्सान की इंसानियत , चमके गगंन में लोग का।।

आज ऐसी दोस्ती , जग में नहीं बदनाम होगी ।

कीर्ति अमर हो कर रहेगी , दोस्ती की शान होगी।।

अफसोस , किन्तु आज ऐसा , मीत कम मिलते यहां।

पवित्रता की पूट इसमें , अब कहां मिलता यहां ।।

असत्य ही सत्य नजर आते.

प्यार से देखिए चाहे जिसे , प्यारा नजर आता ।

नज़रें जिधर भी डालिये, न्यारा नजर आता ।।

नज़रिया हर की है अपनी , सबों की सोच अपनी है ।

अच्छा या बुरा जो देखते,सोच अपनी नजर की है ।।

बुरा कुछ भी नहीं होता , बुरा कोई क्यो बनायेगा।

श्रम निर्माण कर्ताका नहीं , क्या ब्यर्थ जायेगा ।।

जितनी चीज लगनी हो , सभी तो चीज लग जाती ।

बुरी चीजें बनाने में , उन्हें क्या चीज़ बच जाती ।।

यहां हर चीज अच्छी है , नजर का सोच पर होता।

जिसै जिस ढंग से देखें , नजर वैसा उसे आता ।।

दिखाई जो जिसे देता, सदा क्या सत्य ही होता ।

मृग-मिरीचिका तो सर्वदा असत्य ,असत्य ही होता।।

अपनी नजर जो देखती , क्या सत्य ही दिखता ?

दिखे मरूभूमि में पानी सदा , असत्य ही दिखता।।

नजर खाती कभी धोखा , बुद्धि फंस वहीं जाती ।

असत्य को ही सत्य , बुद्धि ज्ञान है लेती ।।

नतीजा ही उलट जाता , फैसला गलत हो जाता ।

सत्य पर असत्य भारी , हो तभी जाता ।।

आंखें देखती उस बात को ही , सत्य कह देना ।

नहीं संदिग्ध क्या लगता ,असत्य को सत्य कह देना ।।

किसी को देखते ही फैसला , देना नहीं अच्छा ।

परख कर जांच कर दें फैसला,होगा वही अच्छा।।

इसकी अहमियत होती ,मौत या जिन्दगी मिलती ।

अति गंभीरता से लें ,जो जाती फिर नहीं आती ।।

मधुर यादें ज़िन्दगी की

यादें मधुर कुछ ज़िन्दगी की ,दिल से कभी जाती नहीं।

दिल को हंसाती या रुलाती , पर त्याग कर जाती नहीं।।

साथ देती जिन्दगी भर , यह हमें हर हाल में ।

सुख की घड़ी हो या गमों की , देती सुकून हर हाल में।।

मीत सच्चा तूं सबों का ,प्यार का एहसास तूं है ।

जिन्दगी निर्बाध तुमसे , संजीवनी पर्याय तूं है ।।

दे हर पलों में साथ सब का ,और ऐसा कौन होगा?

उलझनो को झट मिटा दे , मीत ऐसा कौन होगा ??

जग में नहीं इन्सान जैसा , यादें मधुर जिनको नहीं?

साथ पल या कुछ पलों का , या यों कहें लम्बा नहीं??

यादें मधुर आनन्द लेती ,कड़वी सताती आज तक ।

आती कभी जब याद कड़वी ,रुला देती आज तक ।।

यादें मधुर रस घोलती है , जिन्दगी जाती सुधर ।

जो लोग करते रसास्वाद़न, अनुभूति होती है मधुर।।

यादें मधुर बरदान होती , रस मधुर देती सदा ।

आनन्द भरती ज़िन्दगी में ,नवशक्ति भरती है सदा।।

नीरस न होती जिंदगी ,उत्साह नव भरती सदा ।

दुख भी अगर आता कभी , भागता उससे सदा ।।

रस न हो जिस जिन्दगी मै, जिंदगी बैकार होती ।

रस से भरी हो जिन्दगी, वह जिन्दगी साकार हौती।।

जिन्दगी की मधुर यादै , जिंदगी खुशहाल करती।

आनन्द ही आनन्द करती , जिन्दगी में रंग भरती।।

संबल सही यह ज़िन्दगी की, कोई अन्य ऐसा है कहां ?

खोजकर थक जायेंगे , पर पायेंगे ऐसा कहां ??

दिल चाहता जिसे भूलना.

दिल चाहता जिसे भूलना , भूल पर पाता नहीं ।

चाहूं, निकालूं और फेकूं , फेंक पर पाता नहीं ।।

ये दिल अनोखी चीज है ,यह चाहता करता नहीं ।

दिल में जगह देना न चाहा ,दिल से निकला ही नहीं।।

बन चुकी जिसकी जगह , दिल से तुरत हटता नहीं ।

हट भी अगर जो जायेगा ,चिन्ह पर मिटता नहीं ।।

जब भी दिखेंगी चिन्ह मुझको, याद तेरी आयेगी ।

जिसको था चाहा भूलना , यूं याद यह दे जायेगी ।।

आसान नहीं दिल से मिटाना , कोई मिटा पाता नहीं ।

दाब दें इसको भले , पर पूर्ण मिट पाता नहीं ।।

दिल की बनावट है यही , अबतक तो बदला है नहीं ।

अबतक न कोई पैदा लिया , आगे का कह सकता नहीं ।।

चाहे घृणा कि भाव हो , कुछ प्रेम का ही अभाव हो ।

या चोट गहरी दी गयी , उस चोट का ही स्वभाव हो ।।

घाव तो भरते रहेगें , समय का प्रभाव है ।

दर्द तो कमता रहेगा ,ये दवा का प्रभाव है।।

जख्म तो मिट जायेंगे , पर चिन्ह अपना छोड़ कर ।

दर्द भी कमता कभी पर , याद अपनी छोड़ कर ।।

यह ज़िन्दगी भर तक रहेगा , चिन्ह कभी मिटता नहीं।

गर जिन्दगी अगली मिलेगी ,कोई कह इसे सकता नहीं ।।

प्रेम नाजुक चीज है , दर्द सह सकता नहीं ।

चोट हल्की भी लगी तो , बेचैन कम करता नहीं ।।

जीवन का वृद्धावस्था.

चतुर्थपन इस जिंदगी का , जिसको बुढ़ापा लोग कहते ।

देखकर कितनें बसंत को , इस मुहीम पर आ पहुंचते ।।

दुख-सुख की घड़ियां पार करते, विघ्न से लड़ते झगड़ते।

झेलते बाधायें कितनी ,इस हाल पर हैं तब पहुंचते ।।

अम्बार लेकर अनुभवों का , गम -खुशी को झेलते ।

विवेक को अपना लगा , परिस्थितियों से जूझते ।।

पथ खोजते हिम्मत लगाकर , बाधाओं को भिड़ कर भगाते ।

प्रसस्थ अपना पथ किते ,इस जगह तक पहुंच पाते ।।

खुदखोज कर जो पथ बनाते ,नयी पीढी को उसपर चलाते।

पथ सुगम उनको बता कर, जीवन सुगम उनका बनाते ।।

रास्ता को खोजकर खुद , मार्ग दर्शन हैं कराते ।

लोग नये अभियान अपना , आगे यहीं से हैं बढ़ाते ।।

विज्ञान को किसने बनाया, सोचें जरा वे कौन हैं ।

पूर्वजों की देन नहीं क्या , बोलें लिये कर्मों मौन हैं??

जिसने तुझे चलना सिखाया , यह तो बता दो कौन है?

तुमको यहां तक कौन लाया ,यही ‘बृद्ध’ नहीं तो कौन है??

अपना सभी कुछ दे तुम्हें, लायक बनाया कौन है?

खुशियां सभी तुम पर लुटाया ,यह तो बताओ कौन है??

जिसने बनाया योग्य तुमको , उसके लिये तुम क्या किया?

जिसने लगा दी ज़िन्दगी , उसके लिये भी क्या किया??

उस वृद्ध का संबल बना क्या ,उसके लिये तुमने किया क्या?

वृद्धाश्रम में डाल उनको , अपना निभाया धर्म है क्या ??

तुम इस जगह जब आओगे, करता यातना सह पाओगे?

सब झेलना तुमको पड़ेगा , क्या नहीं पछताओगे ??

ईमान अपना ठीक कर लें ,पथ गये भटक पथ ठीक कर लें।

सुधार पथ जो गये भ्रमित हो ,दिशा गमन का ठीक कर लें।।

सम्मान जिसको चाहिए,‌ अपमान उनको क्यो किये?

अबभी सम्हल जा पथ पकड़ ले ,इसमहाभूल को क्यों किये?

सुन मेरे मनमीत .

आज न तुमको जाने दूंगी ,सुन मेरे मनमीत ।

नजानें कब चुरा लिया तूं , मेरा भोला चित्त ।।

बिवस , बेचारी ,बनी बावरी , तेरा पंथ निहारूं नित ।

बीत रहे कैसे दिन-रैना , बिन तेरे, मेरे मनमीत ।।

तुमसे ही हूं , जो कुछ भी हूं , तुम मेरे उर्जा के श्रोत ।

बिना तेरे एक लाश हूं चलता, समझें जिन्दा या समझें मृत।।

सिर्फ तुम्हींपर टिकी हुई है, जीवन के मेरे सारे गीत ।

वीणा की तारें भरती रहती , इन रागों में मधुर संगीत ।।

मेरी पायल तुझे पुकारे , सुन उनका झंकार ।

छलक रहा मेरे घूंघरु से , मादक , मधुर, मधु का धार ।।ुु

वह भी बस तेरे खातिर ही ,उसपर केवल तेरा अधिकार।

सिवा तेरे कोई अन्य न इसका, बन सकता उसका हकदार।।

तुझे समर्पित सब कुछ अपना ,बस केवल तुझको ही ।

रहा नहीं अब कुछ भी मेरा ,किया समर्पण ज्योही ।।

अस्तित्व नहीं अब अलग हमारा, सब साझा अब हो गये।

अलग अलग अब रहा न कुछ भी , ‘एक’ मिल दोनों होगये।।

समर्पण ही जीवन है होता ,जीवन का आधार यहीं ।

जहां समर्पण नहीं , वहां तो , जीवन का आधार नहीं।।

किया समर्पण ,कर हम खुश हैं , मैं इसे बताते देता हूं।

जुदा कभी ना होंगे दोनों , होंशों हवाश में कहता हूं।।

आज न तुमको जानें दूंगी, ऐ मेरे मनमीत।

रहूं सुनाते दिल की अपनी ,प्यार भरी कुछ गीत।।

दिल के जो बड़े होते.

दिल के जो बड़े होते , वहीं महान होते हैं ।

छोटे-बड़े सब लोग को , उचित सम्मान देते हैं ।।

प्रेम तो करते सबों को , कोई विभेद न करतें ।

भावना सब के लिये , बस एक ही रखते ।।

बड़े कोमल हृदय होते , मृदुल ब्यवहार वे करते ।

उनकी नजर में लोग सारे , एक हैं लगते ।।

सदा समभाव में रहते , कभी विचलित नहीं रहते ।

समभावना से दिल सदा , परिपूर्ण रहा करते ।।

हृदय में प्रेम की धारा ,अविरल ही बहा करती ।

सभी अपनें जिन्हें दिखते , पराया कुछ नहीं लगती।।

जिन्हें संसार क्या ब्रह्माण्ड ही ,अपना नजर आता ।

उन्हें जो कुछ नजर आता ,सब प्यारा नजर आता ।।

समाह्त सब हुए रहते , इनके दिल के कोने में ।

जगत की चीज सारी ढ़ूढ़ सकते , अद्भुत से कोनें में।।

जो समभाव में रहते , उन्हें दुख सुख नहीं होता ।

कोई अपना नहीं होता , न कोई गैर ही होता ।।

अपने पराये का न उनमें , भेद रह जाता ।

पराया जो लगा करते , अपनों में बदल जाता।।

शत्रुता भी जिन्हें होता , मिलते दूर हो जाता ।

उनके मधुर वाणी से , सब काफूर हो जाता ।।

ज़बान उनकी किया करती , प्रेम की बारिश सदा ।

जो श्रोता भींगते उनकी मिटाती , शत्रुता मन की सदा।।

दिल के जो बड़े होते , बड़ी हर चीज ही दिखती उन्हें।

लघुतम चीज भी अक्सर लघु , हरगिज नहीं दिखती उन्हें।।

तबज्जो दिया करते हैं बराबर ,फर्क न करते कभी ।

नीचा दिखाने का नहीं , प्रयास करते ही कभी ।।,