ऐ प्रकृति तुमनें बनाई , गजब ये संसार है ।
नजरें जिधर भी फेरिये, बहार ही बहार है ।।
नदियाँ कहीं, सागर कहीं, अथाह दी गहराई है।
पर्वत-शिखर, कहीं गगनचुंबी, पा लिया ऊँचाई है।।
इन वादियों में घनें जंगल,हरियालियों से हैं भरे ।
छोटे बड़े हर पेड़ ,पौधे,फल फूल से भी हैं लदे।।
विभिन्न लताओं से कहीं ,पेडों की डालें हैं भरे ।
कुछ लतायें हैं चढ़ीं, ,कुछ परजीवी भी हैं चढे ।।
वन्यजीवों का वनों में , सदा चलता राज है ।
कानून भी अब बन गये, इन्हें मारना अपराध है।।
झरना कहीँ पर कर रहा, झड़ -झडाता नाद है।
गंभीर ध्वनी भयभीत करती,किये शान्ति को बर्बाद है।।
तुमनें रची दुनियां अनोखी, यूँ ही रची होगी नहीं ।
मकसद रहा होगा कोई , ब्यर्थ तो होगी नहीं ।।
मेरी समझ से हो परे , इसकी बडी सम्भावना है।
लूँ ही समझ हर बात को ,ऐसी न मेरी चाहना है।।
तुम बनाते ,तुम चलाते ,यह काम बसका है तेरा।
कैसे निभाते हो सदा , समझ में आता न मेरा।।
अजीब दुनियांँ है तम्हारी , अजीब सारी चीज है।
पूछें अगर ज्यादा,कहोगे, करता सदा ही अजीज है।।
संकोच बश कुछ कह न पाता,सोंच लो इस बात को।
मन में उपजती बात सारी , रखता दबाये बात को ।।
धीरज न मेरा टूट जाये ,दें ध्यान भी इस बात का ।
बातें निकल गयी गर कहीं, मानें बुरा ना बात का।।