कलम

ऐ कलम शक्ति तुम्हारी ,सबलोग जग में जानते ।
लगती तो छोटी देखने में,पर तेरी महत्ता जानते।।

ज्ञान जो अर्जित हुआ,अमरत्व देना काम तेरा ।
युग युगो तक लोग जानें,यह बताना काम तेरा।।

मन की बातों को कलम,उतार देती कागजों पर।
सच्चाई का प्रमाण बन,लिपियों में रखती बाँध कर।।

पहचान बन कर संस्कृति की ,तुम जगत में आई हो।
ख्याति तुम संसार में , सर्वदा से पायी हो ।।

ज्ञान ग्रन्थों का तुम्हीं से ,लोग पाते आ रहे हैं ।
तेरी कृपा बिन लोग क्या,इस निधि को पा रहे हैं।।

तेरी कृपा से लोग,पाते आ रहे सब ज्ञान हैं ।
तेरी कृपा का हो धनी , पा रहे सम्मान हैं।।

संसार छूता जा रहा ,तेरी कृपा से आसमाँँ ।
आसमा्ँ ही क्या सुनें,ब्रह्मांड तक की दास्ताँ ।।

ज्ञान का प्रसार , विन तेरे नहीं आसान था।
जब तूँ न थे,लोग सब ,हर गूढ़से अन्जान था।।

ज्ञान के प्रसार में , तेरी अहम है भूमिका ।
जिसने किया है खोज दे दें,दाद उनके ज्ञान का।।

जिसने बनाया हो कलम ,कितना किया एहसान है।
करके सुगम वह रास्ता ,को किया आसान है ।।

मोर पंखों की कलम से , लोग अब लिखते नही।
प्रकार अनेकों लेखनी की ,मिलती जो पहले थी नहीं।।

उपलब्धता आसान हो गये, लेखनी का आज है ।
जा रही बढती बराबर, उपयोगिता भी आज है ।।

2 विचार “कलम&rdquo पर;

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