कहाँँ गयी तूँ गौरैया , कहाँँ गयी ओ गौरैया ।
नजर न आती चूँ चूँ करती,छिपी कहाँँ तूँ गौरैया।।
फुदक फुदक कर आँगन में,आज न दोड़ लगाती है।
घर के वातायन के उपर, बैठी नजर न आती है ।।
कितना प्यार किया करती,जिधर तिधर फुदकी करती।
घुली मिली परिवार का,अभिन्न अंग बनकर रहती ।।
कभी बच्चों के संग जा , रैग रैंग दाने चुँगती ।
कभी बाल कंधों पर उनके, बैठ बैठ खेला करती ।।
करती चूँ चूँ अपने झुंडों में,आज नही क्यों है दिखती?
चली कहाँँ गई हमें छोड़ , क्यों नहीं फुदकती है रहती??
क्या परेशान किया कोई, बिदक क्यों भाग गई हमसे?
कुछ खास बिगाडा है हमने ,क्या इसीलिए रूठी हमसे??
तुझे लुप्त होते जाना , है काफी चिंता की बात ।
यह साधारण बात नहीं , कारण करना होगा ज्ञात ।।
जरा ध्यान दें बुद्धि जीवी , थोड़ा करें मनन इसको ।
लुप्त न होवे इसे बचा लो , संरक्षण दे दो इसको ।।
ऐ गौरैया, छोटी चिडियाँँ , हो तचम प्यारी हमसब के।
साथ निभाती आई हरदम ,न जानें तुम कब हम से ।।
बनता है कर्तव्य हमारा, मदद तुम्हें करने का ।
तेरी आफत ढ़ूँढ़ -ढूँढ , तुम्हें संरक्षण देने का ।।