नाच रही दुनियाँ सारी

समयचक्र में नाच रही है, दुनियाँ की चीजें सारी ।

मैं ,मेरा का वहम पाल कर , रखा है सारा संसारी।।

तेरा,मेरा के इर्दगिर्द में ,भटक रही जगती सारी ।

चीजें तो सारी अनित्य फिर , क्यों करना मारा -मारी।।

विवेकशील सारे जीवों में , सबसे ज्यादा मेधा तेरी ।

कर्म करोगे सर्वोत्तम, जिम्मेदारी बनती तेरी ।।

पर क्यों दलदल में डूब रहे ,क्या मारी गई मति तेरी?

क्यों विवेक से काम न लेते , कैसी ये कुमति घेरी ।।

समय तो कभी नहीं रूकता, द्रुतगति से चलता जाता।

जो कद्र नहीं करता इसका,जीवन भर वह पछताता ।।

करते जो सम्मान समय का, पाते भी उनसे सम्मान।

साधारण इन्सान से , एकदिन बनता बहुत महान ।।

जो अहम त्याग कर्तब्यनिष्ठ हो ,उचित देता सबको सम्मान।

वह मानव नहीं, महामानव, बन जाता है देव समान।।

देवतुल्य उस मानव को, समय दिलाता है सम्मान ।

साधारण मानव कर्मों से, गढ़ लेता अपनी पहचान।।

गौतम थे क्या ,गाँधी क्या थे, थे अशोक क्या, सब इन्सान।

किया कर्म अपनें जीवन में, कर्मों से ही बने महान।।

कर्मशील बन, सत्कर्मों से, जीवन तुम भी करो महान।

समय निकल गये बहुत ब्यर्थ, अब तो जागो इन्सान।।

2 विचार “नाच रही दुनियाँ सारी&rdquo पर;

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