आसान नहीं दिल बाँधना.

दिल भी अजीब चीज चंचल,जानें न कब क्या चाहता?
मिलना नहीं आसान हो जो, चीजें भी ऐसी माँगता ।।

मजबूर होते दिल के हाथों, आदमी सब लोग हैं ।
मस्तिष्क इसे काबू करे , मिलते बहुत कम लोग हैं।।

दिल को अपनी साधना से,जो मनुज कोई साध लेता।
उनको सफलता, हर कदम पर जिन्दगी में चूम लेता ।।

आसाँ नहीं होता कभी पर,दिल को अपना साधना।
जो दृढ़-प्रतिज्ञ हो बाँध लेते ,जो चाहते हों बाँधना।।

जिनका इरादा हो अटल, काम ऐसा कर दिखाते ।
जिसको असंभव लोग कहते,संभव उसेभी कर दिखाते।।

युग-पुरुष होते वही,दिल पर जिन्हे अधिकार होता ।
मस्तिष्क जो उनका चाहता,दिल को देना साथ पड़ता।।

असंभव को अपनी जिन्दगी में,वे कभी लाते नहीं ।
पौरूष-बलो का सामना , कर कभी पाता नहीं।।

सफलतायें आ खुद सामनें,इनके कदम को चूमती ।
इनके गले का हार बन ,किस्मत पे अपनी झूमती।।

धन्य है वह युग-पुरुष,कल्याण युग को वे कराते।
जो आपदायें सामने हो ,देखते इन्हे् भाग जाते।।

शेर की दहाड़ सुन जब, वन्य जीवन मौन होते ।
भाग अपनी खोह में ,जीवन को अपना वे बजाते।।

एक युग पुरुष आता कभी,खल गण तभी हैं मौन होते।
सब भागते भयभीत हो ,सज्जन तभी भयमुक्त होते ।।

परंपरा यह सर्वदा से , चलते सदा ही आ रहे ।
रक्षार्थ सज्जन के लिये ,हो अवतरित कोई आ रहे ।।

कलम

ऐ कलम शक्ति तुम्हारी ,सबलोग जग में जानते ।
लगती तो छोटी देखने में,पर तेरी महत्ता जानते।।

ज्ञान जो अर्जित हुआ,अमरत्व देना काम तेरा ।
युग युगो तक लोग जानें,यह बताना काम तेरा।।

मन की बातों को कलम,उतार देती कागजों पर।
सच्चाई का प्रमाण बन,लिपियों में रखती बाँध कर।।

पहचान बन कर संस्कृति की ,तुम जगत में आई हो।
ख्याति तुम संसार में , सर्वदा से पायी हो ।।

ज्ञान ग्रन्थों का तुम्हीं से ,लोग पाते आ रहे हैं ।
तेरी कृपा बिन लोग क्या,इस निधि को पा रहे हैं।।

तेरी कृपा से लोग,पाते आ रहे सब ज्ञान हैं ।
तेरी कृपा का हो धनी , पा रहे सम्मान हैं।।

संसार छूता जा रहा ,तेरी कृपा से आसमाँँ ।
आसमा्ँ ही क्या सुनें,ब्रह्मांड तक की दास्ताँ ।।

ज्ञान का प्रसार , विन तेरे नहीं आसान था।
जब तूँ न थे,लोग सब ,हर गूढ़से अन्जान था।।

ज्ञान के प्रसार में , तेरी अहम है भूमिका ।
जिसने किया है खोज दे दें,दाद उनके ज्ञान का।।

जिसने बनाया हो कलम ,कितना किया एहसान है।
करके सुगम वह रास्ता ,को किया आसान है ।।

मोर पंखों की कलम से , लोग अब लिखते नही।
प्रकार अनेकों लेखनी की ,मिलती जो पहले थी नहीं।।

उपलब्धता आसान हो गये, लेखनी का आज है ।
जा रही बढती बराबर, उपयोगिता भी आज है ।।

अद्भुत, प्यारा मेघालय

आयें थोडा़ हम अपना, एक राज्य भ्रमण कर आयें।

भारत का छोटा राज्य एक, दर्शन इसका करवायें ।।

असम राज्य का टुकड़ा एक, मेघालय राज्य बना है।

पर्वत खासी, गारो, जैंतिया, हरियाली बड़ा घना है।।

आच्छादित मेघों से रहता , मेघालय कहलाया ।

गुण के ही अनुरूप राज्य का , सुन्दर नाम धराया।।

सुन्दरता की बात न पूछें, स्वर्ग इसे कह सकते ।

लिये गोद में इसे हिमालय, मन देख इसे ना थकते।।

नयनाभिराम हर ओर दृश्य , मनमोहक है, प्यारा ।

ऊँची- नीची घाटियाँ, लगते कितने न्यारा ।।

राजधानी शिलाँग बनी , है शहर लघु, पर सुन्दर ।

स्वच्छता हर ओर यहाँ, गन्दगी न दिखे कहीं पर।।

हर मौसम में बदरी आ , करते रहते अठखेली ।

खेल रहे हों लुकाछिपी, मानों बच्चों की टोली।।

सड़कें लगती, सागर मेंं , उठती हो जैसे भाटा ।

गाड़ी आती दिखती जैसे, कश्ती कोई तैरता आता।।

छोटे -छोटे घर के उपर , छत चदरे की होती ।

हरे- लाल रंगो से रंगी , अति सुन्दर है दिखती ।।

लोग-लुगाई सभी यहाँ के , सौम्य नजर हैं आते ।

मूल निवासी लोग यहाँं के, खासी हैं कहलाते।।

छोटी बेटी, परिवार की , मालकीन होती है ।

उस लाडो की आज्ञा घर में , शिरोधार्य होती है।।

शहर बड़ा तो नहीं बहुत, पर है यह बहुत पुराना।

लगा यहाँं रहता है हरदम , पर्यटकों का आना-जाना।।

जग में सबसे ज्यादा वर्षा, मौसिनराम में होता है।

पास ही स्थित चेरापूंजी, सौंदर्य से भरा पड़ा है।।

वाटर फॉल हैं, ऊँचे-ऊँचे, घाटियां दूर तक, गहरी हैं।

मनमोहक, नयनाभिराम, हर ओर ही दृश्य सुनहरी है।।

डावकी की भी सुंदरता, ऊमगोट नदी यहीं है।

सीधे-गहरे चट्टान मध्य, मनभावन झील बनी है।।

पास में स्थित, मौलिनोंग है, सुंदर सबसे ग्राम।

दुनिया भर के पर्यटकों, को देता सुकून-आराम।।

लिविंग रुट से बना एक पुल, पास ही यहीं अवस्थित है।

स्थानिक मौलिक ज्ञान की, बानगी अद्भुत दिखती है।।

देश है अपना, बड़ा अनोखा, सुंदर एक लड़ी है।

अद्भुत प्यारा मेघालय, सबसे उत्कृष्ट कड़ी है।।

ऐ पिंजरे का पक्षी.

ऐ पिंजरे का प्यारा पक्षी ,मत सोंच अकेला कैद न तुम हो।

जिस मानव ने तुझे कैद किया, उससे तो काफी बेहतर हो।।

पिजरे में तो तुम दोनों ही, चाहे पिंजरा जैसा भी हो ।

हो दोनो तो एक जैसा ही, छोट बड़ा का भेद भले हो ।।

उड़ने वाले पक्षी को तो, धोखा देकर कैद किये हो ।

नहीं बिगाड़ा था कुछ तेरा , जबरन उसको बंद किये हो।।

छीनी है उनकी आजादी, तुमने कितना जुर्म किये हो ।

रे मूढ़ नही क्यों तुम सोंचा , यह कैसा कूकर्म किये हो।।

महज एक कैदी हो तुम भी , पर नहीं दर्द को समझ रहे हो।

सब गयी कहाँ संवेदना , एक पक्षी से भी गिरे हुए हो ।।

मोह ,माया ,ममता का जाल, में ऐसा तूँ फँसे हुए हो ।

कैद न जाने कब के हो गये ,नासमझी में पडे हुए हो ।।

खुद को ज्ञानी भी कहते हो ,अज्ञानी सा कर्म किये हो।

हो फँसे हुए भवजाल में , नहीं इसे पर देख रहे हो ।।

अंध मुरख सच ही है मानव , करते क्यों इन्कार इसे हो।

एक कैदी दूसरे कैदी पर, ढाते कितने जुर्म रहे हो ।।

क्यों विवेक ले कर रखा है , लेते इससे काम नहीं हो ।

कितने पावन आये थे बन, क्यों उसे अपावन किये हुएहो।।

माना पिंजरा बडा है तेरा ,पर उड़ ही पाते कितना हो?

उड़ने की क्षमता है तुममें , पर अपनों में सिमट गयेहो ।।

आ जा पिंजरा तोड़ निकल जा , क्यों क्षमता को भूल रहेहो?

मानव हो जीवों में उत्तम , क्यों पिंजरे में सिमट रहे हो ??

कल्याण करो हर जीवों का, मानव ही उसमें ना क्यो हो?

अवगत तो करवा दो उनको, जितनी उनमें शक्ति निहित हो।।

कहाँ गयी तूँ गौरैया.

कहाँँ गयी तूँ गौरैया , कहाँँ गयी ओ गौरैया ।

नजर न आती चूँ चूँ करती,छिपी कहाँँ तूँ गौरैया।।

फुदक फुदक कर आँगन में,आज न दोड़ लगाती है।

घर के वातायन के उपर, बैठी नजर न आती है ।।

कितना प्यार किया करती,जिधर तिधर फुदकी करती।

घुली मिली परिवार का,अभिन्न अंग बनकर रहती ।।

कभी बच्चों के संग जा , रैग रैंग दाने चुँगती ।

कभी बाल कंधों पर उनके, बैठ बैठ खेला करती ।।

करती चूँ चूँ अपने झुंडों में,आज नही क्यों है दिखती?

चली कहाँँ गई हमें छोड़ , क्यों नहीं फुदकती है रहती??

क्या परेशान किया कोई, बिदक क्यों भाग गई हमसे?

कुछ खास बिगाडा है हमने ,क्या इसीलिए रूठी हमसे??

तुझे लुप्त होते जाना , है काफी चिंता की बात ।

यह साधारण बात नहीं , कारण करना होगा ज्ञात ।।

जरा ध्यान दें बुद्धि जीवी , थोड़ा करें मनन इसको ।

लुप्त न होवे इसे बचा लो , संरक्षण दे दो इसको ।।

ऐ गौरैया, छोटी चिडियाँँ , हो तचम प्यारी हमसब के।

साथ निभाती आई हरदम ,न जानें तुम कब हम से ।।

बनता है कर्तव्य हमारा, मदद तुम्हें करने का ।

तेरी आफत ढ़ूँढ़ -ढूँढ , तुम्हें संरक्षण देने का ।।

नाच रही दुनियाँ सारी

समयचक्र में नाच रही है, दुनियाँ की चीजें सारी ।

मैं ,मेरा का वहम पाल कर , रखा है सारा संसारी।।

तेरा,मेरा के इर्दगिर्द में ,भटक रही जगती सारी ।

चीजें तो सारी अनित्य फिर , क्यों करना मारा -मारी।।

विवेकशील सारे जीवों में , सबसे ज्यादा मेधा तेरी ।

कर्म करोगे सर्वोत्तम, जिम्मेदारी बनती तेरी ।।

पर क्यों दलदल में डूब रहे ,क्या मारी गई मति तेरी?

क्यों विवेक से काम न लेते , कैसी ये कुमति घेरी ।।

समय तो कभी नहीं रूकता, द्रुतगति से चलता जाता।

जो कद्र नहीं करता इसका,जीवन भर वह पछताता ।।

करते जो सम्मान समय का, पाते भी उनसे सम्मान।

साधारण इन्सान से , एकदिन बनता बहुत महान ।।

जो अहम त्याग कर्तब्यनिष्ठ हो ,उचित देता सबको सम्मान।

वह मानव नहीं, महामानव, बन जाता है देव समान।।

देवतुल्य उस मानव को, समय दिलाता है सम्मान ।

साधारण मानव कर्मों से, गढ़ लेता अपनी पहचान।।

गौतम थे क्या ,गाँधी क्या थे, थे अशोक क्या, सब इन्सान।

किया कर्म अपनें जीवन में, कर्मों से ही बने महान।।

कर्मशील बन, सत्कर्मों से, जीवन तुम भी करो महान।

समय निकल गये बहुत ब्यर्थ, अब तो जागो इन्सान।।

ऐ जादूगर

ऐ जादूगर जादू तुम्हारा, छाया हुआ हर ओर है।
तेरी ही माया का करिश्मा,दिख रहा हर ओर है।।

जो देखती है आँख मेरी ,शायद नजर का फेर है।
नजारें दिखाई दे रही जो, रहती न ज्यादा देर है ।।

तुम बनाते तुम मिटाते , करते सदा यह खेल तूँ ।
कई बार तो कोई अजूबा, भी दिखाते खेल तूँ ।।

हर बात तेरी मन में मेरा,क्यों न जाने कौधती है।
दृश्य अजूबा कुछ दिखा ,मन को मेरा मोहती है।।

जो चाहते हो तुम दिखाना,बस वही दिखता मुझे है।
तुम बताते जो मुझे हो ,बस वही आता मुझे है ।।

जो तुम बताते मानता मन, पूर्णतः विश्वास से ।
पूरा असर अब मेरे दिल पर ,कर लिया अधिकारसे।।

वह भी तो बस अपनी खुशी से,दे दिया अधिकार है।
क्या जादू तेरा जादूगर , होता यही क्या प्यार है ।।

तूँने बनाई चीज सारी ,क्या हाथ की ही सफाई है?
जो बनाते झूठ सारी ,नजरों ने धोखा खाई है ।।

नित्य तो होता नहीं कुछ ,अनित्य ही हर चीज है ।
जो आज है मिट जायेगी कल,ऐसी ही सारी चीज है।।

तुम जो दिखाते हो हमें ,नजरें क्या धोखा खा रही ?
ये चीजैं सारी अनित्य है, नित्य नजर पर आ रही ।।

हम सब ठगे से हैं यहां ,सब झूठ है बेकार है ।
जो देखते सब ही ठगी है ,असत्य यह संसार है।।

ऐ जादूगर जब छल रहे ,तो क्यों बनाया था हमें।
क्या स्नेह से हमको बना,छलना पडा अब क्यों हमे।।

कोई शत्रुता तो थी न हम से,जिसका दिये परिणाम हो।
हमनें बिगाडा क्या तुम्हारा, लगाये क्या इल्जाम हो ।।

मानव- जीवन

मानव जीवन का कालचक्र, बिन रुके चला जाता है।
क्षण-प्रतिक्षण अपनें पथ पर,बढा़ चला जाता है ।।

शैशव बन धरती पर आते, बढ़जाते मानव बन जाते ।
बढ़ते जाना ही जीवन है ,रुक जाते जो मर जाते ।।

आयु बढ़ता है या घटता ,कहनें का ढंग अलग होता ।
कहता कोई घटता जाता ,कोई कहता बढ़ता जाता ।।

जो रौनक थाअब रहा कहाँ,गरिमा थी अब बची कहाँ?
हुई भग्न महल की दीवारें,गुम्बज थे उग गये पेड़ वहाँ।।

जब बृद्धावस्था आ जाता,बदल सभी कुछ है जाता।
जो था रौनक अब रहा नहीं,लाचार बनासा दिख जाता।

बचा एक संबल होता, याद जवाँ की रह जाती ।
उन मीठी मीठी यादों में ,पीड़ा ही मनकी मिट जाती।।

उन बातों में खो जाना है, अपनें दिल को बहलाना है।
नयी पीढ़ी का कौन भरोसा,हरगिज ना चोंच लगाना है।।

है कौन ठिकाना मित्र मिले,जिससे मन की बातें कहलें।
उससे तो यह उत्तम होगा,खुद कहलें,खुद ही सुन लें।।

गर साथ रहे जीवनसाथी, जीना तब होता आसान।
धन्य भाग्य कहलाओगे , समझे जाओगे भाग्यवान।।

अगली पीढी सम्मान करे,उनसे गर थोडा़ प्यार मिले।
तबतो किस्मतका क्या कहना ,क्योंना उसपर नाज करें।।

तब धन्यपुरुष कहलाओगे,खुद किस्मत पर इठलाओगे।
सम्मान करेगें लोग सभी, सुख का जीवन जी पाओगे।।

कैसा जमाना आ गया.

कैसा जमाना आ गया, गयी लुप्त हो कृतज्ञता ।
भर गयी  सब लोग में ,   पूरी तरह कृतघ्नता ।।

दुर्भिक्ष मानों हो गया , कृतज्ञता का आज है ।
धोखाधड़ी ,चमचागिरी का ,हो गया अब राज है।।

कृतज्ञता को भूल सब , कृतघ्नता को मान देते ।
साध लेते स्वार्थ अपना , फिर नही सम्मान देते।।

सम्मान को तो छोडिये ,पहचान से इन्कार करते।
नजरों में आ जाते कहीं,नजरें उधर से फेर लेते।।

अति ब्यस्तता का ढोंग रच,’देखें नहीं’का पोज देते।
फिर भी अगर कुछ पूछडाला,अच्छा बहाना ठोक देते।।

सारा जमाना आज का, कृतघ्न है और हो रहे ।
मूढ का पर्याय अब, कृतज्ञता को कह रहे ।।

कृतज्ञता तो अब बेचारा ,बन यहाँ पर रह गया ।
कृतघ्नता का राज है अब ,श्रेष्ठ वही अब बन गया।।

कृतघ्न करते चापलूसी ,मक्खन लगाना जानते ।
मधुर बातें खूब करते ,लोग सब को फांसते ।।

फाँस कर उनलोग को ,मतलबों को निकाल लेते।
बाकी बचे कचरों को वे ,डस्टबीन में जा डाल देते।।

कृतज्ञता कृतघ्नता का ,दौड़ तो चलता रहा है ।
दुनियाँ बनी दोनों मिलाकर,साथ ही चलता रहा है।।

कृतज्ञता सदगुण भरा ,मानवता फलता यहाँ है ।
कृतघ्नता बिपरीत होती ,मानवता मरता यहाँ है ।।

ये जिंदगी है क्या?

होता कुछ कदम का फासला,बस जिन्दगी और मौतका।
पहला कदम तो जिन्दगी, अगला कदम तो मौत का।।

कोई अछूता तो नहीं, इस जिन्दगी का खेल से ।
सत्य बस केवल यही, अवगत सभी इस खेल से ।।

है जिन्दगी क्या मौत क्या ,देखते सब लोग हैं ।
रहस्य क्या है खेल का , जानता ना लोग है ।।

अज्ञानता का तम भरा ,डूबा हुआ संसार है ।
ढ़ूँढ़ा न कोई आजतक , कैसे बना संसार है ।।

प्रयास तो करते रहे , रहस्य से अनभिज्ञ रहे ।
गूढ क्या उसमें निहित , ज्ञात हम करते रहे ।।

पर बात सारी जानना भी,क्या बहुत आसान है?
गर्भ में उसके न जानें ,कितने पड़े विज्ञान है ।।

पर खोजनें में जो भिड़े ,खोज ही लेते उसे ।
आवरण को तोड कर ,अनावरण करते उसे ।।

दुनियाँँ बहुत ही है बडी ,हमलोग जितना जानते।
उसके भी आगे और क्या है ,कुछ लोग शायद जानते ।।

सृष्टि बनाई चीज सारी , पर हम जानते ही क्या?
कैसे बनाई है उसे , हम सोंचते भी क्या ??

इस जिन्दगी और मौत का ,रहस्य क्या हम जानते?
जो अटकलें है लोग का ,सिर्फ वही हम जानते ।।

विज्ञान का उतना पहुंच ,अबतक न हो पाया यहाँ।
पहुँचेंगे जानें कब तक , मालूम भी हमको कहाँ ।।

जरूर पहुँचेगें वहाँ तक, अटल ये बिश्वास है ।
रहस्य भी मिल जायेगा, दिल में भरा ये आश है।।