ऐ प्रकृति तुझे शुक्रिया, तुमनें किया एहसान हमपर।
बिन तेरे कोई कल्पना ही,जिन्दगी का ब्यर्थ मही पर।।
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तूँने दिया है क्या नहीं, तूँने दिया तो चीज हर ।
भेजा जमीं पर है हमें ,अति हर जरूरत पूर्ण कर ।।
पेय जल तूँने दिया है , झील नदियाँ भेज कर ।
जल तुम्ही उसमें भराया , बादलों को भेज कर ।।
भेजा पवन मलयागिरी से ,सुरभि वहाँ से डाल कर।
कली-कली हर पेड का ,फूल बन जाते विहँस कर।।
पेड़ पौधे ,पत्तियों का , आता पवन स्पर्श कर ।
स्वस्थ्य रहते लोग उसको ,अपने श्वसन से ग्रहण कर।।
करते शजर उपकार हमपर,इनके सिवा कुछऔर देकर।
फल-फूल दे भोजन करा,स्वादिष्ट रसीले रस पिलाकर।।
गर्व हम क्यों ना करें, इनके किये उपकार पर ।
इतना तो हम सब झट करें , काटना पावन्द कर ।।
एहसान सिर्फ उन पर न होगा, होगा तो अपनें आपपर।
शजर रक्षा से अधिक, रक्षा है अपने आप पर ।।
फायदा आयें उठायें , एक पथ से दो काज कर ।
अपना भी होगा फायदा ,औरों को थोडा लाभ देकर।।
खायें कसम हम आज सबमिल,ना जुर्महो अब पेड पर।
रक्षा करें हमलोग मिलकर ,इनकी तबाही रोक कर ।।
गंदा नहीं अब देंगे होने ,नदियों को गंदगी डाल कर ।
स्वच्छ पावन फिर बनायें ,जल को सुधा अब मानकर।।
काम चाहे कुछ करें, पर ध्यान रख पर्यावरण पर ।
ब्ववधान तो हरगिज न कर ,प्रकृति के काम पर ।।