उलझा हुआ इन्सान होता है.

मानव को समझ पाना नहीं, आसान होता है।
जीवों में अति उलझा हुआ , इन्सान होता है।।

नीयत कब बदल जाये किसी का क्या ठिकाना है।
दिल मे क्या छिपा रखा ,अति मुश्किल बताना है।।

इनका क्या भरोसा ,कुछ पलों में बदल भी जाता।
क्या काम करना था उसे ,पर क्या करा देता ।।

काम ,क्रोध ,मद, लोभ का,यह तो खजाना है ।
संयम खो दिया जिसनें , उसे तो डूब जाना है ।।

जो बस मे कर इसे लेता ,बडा ही महान बन जाता।
इन्सान से उठ कर वही , भगवान कहलाता ।।

फर्क बस आत्मा-परमात्मा का,मिट तभी जाता ।
जहाँ भी देखता उसको नजर , परमात्मा आता ।।

गुण सारे भरे इन्सान में , बस ढ़ूँढ़ लेना है ।
चयन है आपको करना , जो चाहें चून लेना है ।।

जितना रास्ता होता , सब के सब खुला होता ।
चयन बस आप का होता ,गमन भी आप का होता ।।

विवेक से काम जो लेता, वही आगे निकल पाता ।
गणतब्य भी हासिल उसी को , हो कभी पाता ।।

भरा हो हौसला जिनमें ,रहे ईमान भी जिसमें ।
दिल का साफ होता वह ,प्रपंच रहता नहीं उसमें।।

निष्ठ कर्तब्य में होना ही , मानव धर्म होता है ।
विरग जो भी हुए इससे , अधर्म होता होता है।।

विवेक है जो आप में ,बस काम उससे लीजिये।
फैसला जो वह करे , आप उसको कीजिए ।।