सभी नाचते ,समय नचाता

समय कभी भी नहीं किसी का,इन्तजार है करता ।
क्या राजा क्या रंक सबों पर ,दृष्टि एक ही रखता।।

प्रकृति समदर्शी होती ,भेदभाव तो तनिक न रखती।
नजरों में उनकी सारी जगती,सदाही एक दिखा करती।।

नाना प्रकार के जीव जन्तु ,पौधों पेडों के भी प्रकार।
सचर अचर हों जितनें सारे,सबसे रहता है इनको प्यार।।

जितनी भी हों चीजें सारी ,सबका निर्माता प्रकृति ।
प्यार सबों को यह करती,बिन भेद न कोई विकृति।।

कहीं प्यार से फूल खिला ,रंग सुगंध क्या भर देती।
रंगीन तितलियाँ,गुँजन भँवरों का,उसमें मस्ती ला देती।।

कुछ अन्य मधुप भी मंडराते, अठखेली फूलों से करते।
मधु का रसपान तो करते ही निषेचन भी उनका करते।।

क्या दृश्य गजब का आताहै,मघुमास अजबका ढ़ाता है।
भरता नवयौवन जीवों में,हर कण ही तब मुस्काता है।।

पर यह भी सदा नहीं रहता,समय भी मारन कम देता।
होती विलीन सब सुन्दरता,शुष्क धरा का वय होता ।।ल

फिर भी समय नहीं रुकता,हरक्षण,प्रतिपल बढ़ता जाता।
निरंतर ही अपनी गतिसे,तय मग अपना करता जाता ।।

यह सदा देखता रहता सबकुछ,कुछनहीं बोलता वह पर।
ध्यान सभीपर वह रखता ,बस मूकदर्शक एक बनकर।।

पर नहीं छोड़ता कभी किसीको,मुखदेखी कुछन करता।
सब के कर्मों का सही फैसला,निर्भीकता से कर देता।।

सबके सब झुकते इसके आगे,चाहे बडाहो याहो छोटा।
सभी नाचता,यही नचाता, आगे उनके बन कर छोटा।।

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