रहा शान्ति के प्रवल पुजारी, भारत मेरा देश ।
देते आये हम्हीं सदा से , शान्ति का उपदेश ।।
जीवन जीनें का सही तरीका ,लोगों को समझाया ।
कुछ देश पड़ोसी के भी मन को,प्रभावित कर पाया।।
‘जियो और जीने दो का ‘ , मंत्र सदा बतलाया ।
‘घृणा पाप का मूल है ‘, लोगों को समझाया ।।
बैर नहीं करना सिखलाया , शान्ति से जीना बतलाया।
काफी विकसित थे ज्ञान क्षेत्र मेंं ,अन्य देश को भी दिखलाया।।
शक्ति सारी निहित थी हममे, सभी ज्ञान में थे प्रवीण।
गूढ़ लोग को थे समझाते , युद्ध न कुछ देता निदान ।।
शक्तिशाली की बात ,लोग को प्रभावित करती है ।
दुर्बल चाहे लाख ज्ञान दे, असर न कर पाती है ।।
‘भय बिन प्रीत नहीं होती ,’ लगता अकाट्य कथन है ।
सज्जन की बात अलग कर दें ,दुर्जन पर सत्य कथन है।।
अपनी अर्जित शक्ति की भी , प्रदर्शन करना पडता ।
‘नष्ट तुझे भी कर सकता ‘ का, भय भी दिखलाना पडता है।।
दुष्टों की उसकी भाषा में ही , समझाना पड़ता है ।
अगर जरूरत पड़ी छड़ी को , चमकाना पड़ता है।।
यह बात नहीं है कोई नयी , है तो यह बहुत पुरानी ।
करते आये लोग युगों से , बन कर रह गयी कहानी।।
हर बातों में झगड़ा डालो ,कुछ हासिल हो जायेगा ।
नहीं चाहते लोग झगड़ना , कुछ न कुछ मिल जायेगा।।
अगर अकड़ कर हम भी हो गये , लड़ने को तैयार ।
भाग खड़ा हो जायेगा फिर , अपना पैर कबाड़ ।।
प्रायः पाक यही काम तो , अक्सर करता है जाता ।
अगर अकड़ कर देते टक्कर, भाग खडा वह हो जाता।।
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