कहाँ गयी वह गौरैया?

कहाँँ गयी तूँ गौरैया , कहाँँ गयी ओ गौरैया ………

फुदक फुदक कर आँगन में तूँ, आज न दौड़ लगाती है।

घर के वातायन के ऊपर ,अब बैठी नजर न आती है ।।

तूँ कितना प्यार किया करती थी, जिधर-तिधर फुदकी करती थी।

घुली-मिली परिवार का एक,अभिन्न सदस्य बनकर रहती थी।।

कभी बच्चों के संग में जा , रैग रैग दानें चुँगती थी ।

कभी बाल कंधों पर उनके ,बैठ बैठ खेला करती थी।।

करती चूँ-चूँ अपने झुँडो में ,आज नहीं क्यों दिखती है?

चली कहाँ गयी हमें छोड़ , क्यो नहीं फुदकती रहती है??

क्या परेशान किया कोई , बिदक क्यो भाग गयी हमसे ?

कुछ खास बिगाड़ा है हमनें , क्या इसीलिए रूठी हमसे??

तुझे लुप्त होते जाना है , यह काफी चिंता की बात ।

यह साधारण सी बात नहीं, कारण तो करना होगा ज्ञात।।

जरा ध्यान दें बुद्धिजीवी ,थोडा़ करें मनन इसको ।

लुप्त न होवे ,इसे बचा लो , संरक्षण दे दो इसको ।।

ऐ गौरैया, छोटी चिड़ियाँ , हो तुम प्यारी हमसब के ।

साथ निभाती आयी हरदम , न जाने तुम कब हम से।।

बनता है कर्तव्य हमारा, मदद तुम्हें करनें का ।

तेरी आफत ढ़्ँँ ढ़ -ढ़ूँढ़ , तुम्हें संरक्षण देनें का ।।