सूर्य बड़े हो सबसे

ऐ सूर्य बड़े हो तुम माना, तुममें कितना प्रकाश भरा।

तुम से रौशन सारी दुनियाँँ,लगता ना तुममें दर्प जरा ।।

तुमसे ही चंदा हो रौशन, सुन्दर बन कर इठलाता ।

वैसा ही मुखडा पाने को ,प्रेमी-प्रेमिका ललचाता।।

कितनों ने किये बखान तुम्हारे, सुन्दरता का भर दम ।

पर नहीं पूर्ण वह कर पाया , सदा रहा ही वह कम ।।

प्रयास किये कितने सारे , फिर भी पूर्ण नहीं होता।

बचे नजर आने लगते हैं , नजर पीछे जब भी करता ।।

तुम हो तो दुनियाँ भी सारी , बिन तेरे कुछ है क्या ?

केन्द्र-बिन्दू भी तुम हो उसका , ग्रह नक्षत्र बिन तुम क्या??

सौरमंडल अपना जो तेरा , तुम ही हो उसके स्वामी । सब के सब संचालित तुम से , बाकी तेरे अनुगामी ।।

तुम ही सब के जीवनदाता , प्रत्यक्ष सदा दिखते हो ।

तुम ही सब के संचालक , प्रत्यक्ष नजर आते हो ।।

बिना तुम्हारे जीवन का , ना परिकल्पना हो सकता ।

सचर -अचर को बिन तेरे , ना जीवन रक्षण हो सकता ।।

पूज्य मानते लोग तुझे , यह सत्य नजर है आता ।

देव मानते हो गर उनको , शंका तनिक न होता ।।

तुम ही करते हो जन -जन में , जीवन का संचार ।

तुम से आता रहता जग में , जीवन का नया बहार।।

नमन लोग करते हैं तुमको , जिसके तुम सच्चे अधिकारी।

धन्यवाद के पात्र बडे़ जो , पूज्य तुझे समझा संसारी ।।

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