आस्तीन का साँप हर जगह होते.

जहर का पान खुद कर जो , किसी को प्राण हैं देते।

स्वयं ही झेलकर बिपदायें , और को त्राण हैं देते ।।

मुसीबत से बचाते और को , खुद झेल कर उनको।

सहन करते अनेंकों कष्ट, मसीहा तब बना करते ।।

राम को देखो , उधर रहमान को देखो ।

ईसा की ओर भी देखो , उधर मे श्याम को देखो ।।

उन हर लोग को देखो , जिन्हें भगवान हो कहते । झेलते कष्ट का अम्बार खुद , मसीहा तब बना करते।।

दूर की बात जानें दें , नजर नजदीक हैं करते ।

गाँधी , सुभाष और भगत सिंह , सा लोग का करते।।

अपनी जिंदगी को दावपर , उसने लगा डाली ।

सितम कितने सहे उसनें, अंततः जान दे डाली ।।

स्वयं ही जान दे कर , देश को आजाद वे कर गये।

अपनी आहुति दे कर , हमें कल्याण करते गये ।।

पर कुछ ‘आस्तीन का साँप ‘ , हर युग में रहा करते ।

आप के साथ रह कर , आप की जड़ खोदते रहते ।।

लेकर आप को बिश्वास में , आप ही पर घात हैं करते।

मौका जब उन्हें मिलता , पलट कर डँस लिया करते।।

रहते नाग भीतर से , बाहर आदमी दिखते ।

उन्हें पहचानना मुश्किल , भेष वैसा कीये रहते ।।

देते लोग को धोखा , धोखा खा सभी जाते ।

बडी आघात हो जाती , बात को तब समझ पाते।।

ये आस्तीन का साँप , बड़े ही बिष भरे होते ।

डंसते तब सम्हलने का , अवसर तक नहीं देते ।।

शत्रु आदमी का आदमी , हरदम हुआ करता ।

मानव बना ब्यवहार , पशुओं सा किया करता।।

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