गहराई में अपनें ही दिल की , जब मनुज कोई डूब जाता ।
अनमोल, दुर्लभ रत्न कुछ, वह वहाँ से खोज लाता ।।
काफी अधिक सागर से ज्यादा , होती सदा गहराई इसकी ।
गर्भ में रहते छिपे , नवरत्न की आगार उसकी ।।
निकाल लेना ढ़ूढ़ कर , होता नहीं आसान इतना ।
प्रयत्न तो बहुतों किये , होते सफल पर लोग कितना??
कोई बौरा डूब कर , जाता है जिस गहराई तह तक ।
रत्न भी अनमोल उतना , ढ़ँढ़ पाता है वहाँ तक ।।
रत्न तो सर्वत्र पड़े हैं , सिर्फ उनको ढ़ूढ़ना है ।
चश्मा लगाना है उसे , जिससे दिखे जो ढ़ूढना है ।।
अच्छी जहाँ हर चीज होती , ना गन्दगी होती वहाँ क्या?
खिलते कमल जिस ताल में ,कीचड़ नहीं होती वहाँ क्या??
अच्छाई और बुराइयों से , मिल ये बनती जिन्दगी ।
वगैर एक दूजे बिना तो , नीरस ही लगती जिन्दगी।।
ढ़ूँढ़ लेता चीज वह , गहराई तक जो डूब जाता ।
अनावरण कर गूढ़ को , रहस्य उसका जान जाता ।।
ज्ञान की चक्षु से ओझल , होती नहीं कोई चीज है ।
हो बेनकाब , स्पष्ट दिखती , सामने हर चीज है ।।
मिलती उन्हें है दिब्य दृष्टि , जिस नाम से सब जानते।
दिखती उन्हें हर चीज उससे , लोग यह हैं मानते ।।
जाती पहुँच है ज्ञान-दृष्टि , पहुँचा जहाँ न कोई पहले।
देती दिखाई चीज वह भी , देखा न जिसको कोई पहले।।
देखा कभी था ‘सूरदास’ ,देखा न कोई आज तक ?
नयनों बिना चित्रण किया , किसने किया है आजतक??
दिब्य -दृष्टि लोग कहते , तो नहीं उसको कहीं ?
हो फर्क केवल नाम का , और तो कुछ भी नहीं ।।