माँ-बाप अपनों में नहीं आते.

जल मे जो रहा करते , मगर से बैर न करते ।

घर शीशे का हो जिनका,पत्थर फेंका नहीं करते।।

यही दस्तूर दुनियाँँ की,सम्हल कर सब चला करते।

जहाँ नुकसान अपना हो,भूल वैसा नहीं करते ।।

कहावत यह पुराना है, आज चरितार्थ पर होते ।

कहा जिसने कभी हो , अक्षरशः सत्य पर लगते।।

दायरा ही अपनों का , सिमट छोटा हुए जाते ।

अब माँ -बाप दुनियां में , अपनों में नहीं आते ।।

पति-पत्नी और दो बच्चे , अब परिवार हैं होते।

‘बसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना ,कम नजर आते ।।

अब तो दोस्ती अक्सर , मतलब बिन नहीं होते ।

अगर जो सध गया मतलब ,नजर फिर से नहीं आते।।

भरमार चमचों की , अक्सर वही होता ।

ईष्टसाधन की जहाँ , सम्भावना होता ।।

उम्मीदें खत्म हो गयी , गर समझ ले ।

भूल से दर्शन ,दर्शन नहीं होता ।।

बडी ही मतलबी दुनियां, आजकल हो गयी ऐसी ।

मकसद नहीं जिनसे , उधर नजरें नहीं करते ।।

शीशे से अधिक नाजुक, मानव दिल हुआ करते ।

हल्की चोट भी काफी , टूटने के लिये होते ।।

कहीं गर टूट गये ईक बार, फिर जोड़े नही जुटते ।

कहीं गर जुट गया भी , दाग तो बिलकुल नहीं मिटते।।

सिमटते जा रहे हैं दिल ,सिमटती जा रही अब संस्कृति।

क्या नजारा अब हमें , दिखलायेगी यह प्रकृति ।।

ज्ञान दे कर बहुत ज्यादा , मानव बनाई प्रकृति ।

क्या दिशा बिपरीत पा अब , आ रही है विकृति ।।

ईमान अब दिल से निकल , जानें कहां काफूर हो गये।

ईमान का था जो खजाना , विकृति से पूर्ण भर गये ।।

आस्तीन का साँप हर जगह होते.

जहर का पान खुद कर जो , किसी को प्राण हैं देते।

स्वयं ही झेलकर बिपदायें , और को त्राण हैं देते ।।

मुसीबत से बचाते और को , खुद झेल कर उनको।

सहन करते अनेंकों कष्ट, मसीहा तब बना करते ।।

राम को देखो , उधर रहमान को देखो ।

ईसा की ओर भी देखो , उधर मे श्याम को देखो ।।

उन हर लोग को देखो , जिन्हें भगवान हो कहते । झेलते कष्ट का अम्बार खुद , मसीहा तब बना करते।।

दूर की बात जानें दें , नजर नजदीक हैं करते ।

गाँधी , सुभाष और भगत सिंह , सा लोग का करते।।

अपनी जिंदगी को दावपर , उसने लगा डाली ।

सितम कितने सहे उसनें, अंततः जान दे डाली ।।

स्वयं ही जान दे कर , देश को आजाद वे कर गये।

अपनी आहुति दे कर , हमें कल्याण करते गये ।।

पर कुछ ‘आस्तीन का साँप ‘ , हर युग में रहा करते ।

आप के साथ रह कर , आप की जड़ खोदते रहते ।।

लेकर आप को बिश्वास में , आप ही पर घात हैं करते।

मौका जब उन्हें मिलता , पलट कर डँस लिया करते।।

रहते नाग भीतर से , बाहर आदमी दिखते ।

उन्हें पहचानना मुश्किल , भेष वैसा कीये रहते ।।

देते लोग को धोखा , धोखा खा सभी जाते ।

बडी आघात हो जाती , बात को तब समझ पाते।।

ये आस्तीन का साँप , बड़े ही बिष भरे होते ।

डंसते तब सम्हलने का , अवसर तक नहीं देते ।।

शत्रु आदमी का आदमी , हरदम हुआ करता ।

मानव बना ब्यवहार , पशुओं सा किया करता।।

बातें अतीत में गुम न हो जाती.

जो बातें बीत जाती है , अतीत में गुम न हो जाती ।

बातें लौट कर अक्सर ,दिलों को छू चली जाती ।।

मैं तो चाहता दिल से , निकल फिर दिल में न आये।

दर्द जो कम रहा था , लौट कर वापस न फिर आये।।

थका जो सो रहा था , नींद उसकी खुल नहीं जाये ।

चैन जो मिल रहा थोड़ा, वहीं से लौट न जाये ।।

जमाना है बडा़ जालिम , उनको दर्द नहीं होता ।

कुरेद कर दर्द देनें में , मजा उनको बडा़ आता ।।

हृदय से निर्दयी होता , दिल पाषाण का होता ।

कराहें आप की सुनकर, उन्हें सकून ही मिलता ।।

भरे हैं लोग दुनियां मे , कमी उनकी नहीं रहती ।

पीड़ा से कराहे गर , उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ती।।

पुरानी याद आ कर आप को तो ,दिल दुखा सकती ।

आप की छीन सकती चैन , नहीं कुछ लाभ दे सकती।।

पीड़ा जब उठा करती , दिल बेचैन हो जाती ।

यादें भी अकेली आ , उधम ये कम नहीं करती ।।

जो बातें बीत जाती है , सबक उनसे मिले ले लें ।

आगे रास्ता अपना , तय खुद सोंच कर कर लें ।।

सही जब राह मिल जाये , तभी गण्तब्य मिल पाता ।

मकसद जिन्दगी का पूर्ण भी ,उससे न हो पाता ।।

भले ही देर हो जाये , पहुँचना तो पहुँचना है ।

गणतब्य हासिल बिन किये ,बिलकुल न रुकना है।।

ऐसे युग पुरुष होते , कभी आते वे धरती पर ।

दुखों से त्राण दिलवाने , कभी आते ही धरती पर।।

दोस्ती

दोस्ती तो कीजिए , पर हर तरह से सोंच कर ।

हरगिज न जल्दी कीजिए ,आज दनियाँँ देख कर।।

युग नहीं अब रह गया , विश्वास के काबिल यहाँ।

ढ़ूँ ढ़ने लग जायेंगे , पायेगे पर थोड़ा यहाँ ।।

अब लोग बढते जा रहे , आवादियों की बाढ़ है ।

बात जिनकी हो कहेगें , उनसे दोस्ती प्रगाढ़ है ।।

दुहाई देगें दोस्ती की , यूँ ही किसी भी बात में ।

अवसर अगर कहीं आ गया , आ जायेगें औकात में।।

ढ़ूँढ़े नहीं मिल पायेगे , उन्हें खोजते थक जायेंगे ।

घर पर अगर उनके पहुँच गये , ताला लटकते पायेगें।।

गाढ़े समय गर पार हो गये , खुद ही निकल कर आयेंगे।

तगड़ा बहाना कुछ बना कर ,आप को बहलायेगें ।।

वक्त का है यह तकाजा , या समय का दोष है ।

अधिकांश ऐसे लोग आज , किसको कहेगें दोष है ??

मित्रता अनमोल होती , पर नक्कालियाँ भरमार इसमें।

दिखता तो बाहर से नहीं ,भीतर से फाँके तीन इसमें ।।

पर गलत गर मित्र मिल गये , नुकसान वह पूरा करेगा ।

डुबोयेगा मझधार में , लूट लेगा , जाँ भी लेगा ।।

सावधानी खूब बरतें , मित्र बनाने के लिये ।

भर जिन्दगी की मित्रता , उनसे निभाने के लिये ।।

गाढ़े समय में कर भला सब , भूल उसको जाइए ।

एहसान का बदला मिलेगा , दिमाग के मत लाइये ।।

डाल दें कचरे में उसको , मत उधर को देखिये ।

दूर आँखों से करें, कुछ चिन्ह भी मत छोड़िये ।।

ना कर्ण का अब है जमाना , ना जमाना कृष्ण का ।

वह जमाना अब नहीं , अब तो जमाना धूर्त का ।।

दोस्ती का स्वांग भर , उनको बनाते मूढ़ अब ।

पवित्रता को भंग कर की , दोस्ती बदनाम अब ।।

प्रेम-बंधन

प्रेम बिन दुनियां न चलती , चलता नहीं संसार ये।

अजीब ये बन्धन है जो , बाँधे निखिल संसार ये।।

मिलते अनेकों जीव-जन्तु , वह भी बृहद प्रकार के।

देखा न हो शायद सबों को ,कोई आदमी संसार के।।

हिंसक हो , या वे हों अहिंसक, अधिकांश रहते झुंड में।

कस के बँधे वे सब हैं रहते , मजबूत बंधन प्रेम में ।।

बंधन भी चाहे कोई हो , दृश्य या अदृश्य हो ।

पर प्रेम का बंधन न दिखता , रहता सदा अदृश्य वो।।

विज्ञान साबित कर चुका , चुम्बकत्व के प्रभाव को ।

बातें समझंनें लोग लग गये , बंधन के हर प्रभाव को।।

बंधन अगर होता नहीं , ग्रह अक्ष पर चलता नहीं ।

सृष्टि हमें जो दिख रही , हम आप भी रहते नहीं ।।

दिन रात होता रोज दिन , बन्धन का ही प्रभाव है ।

नक्षत्र का दिखना अनवरत , नियम का स्वभाव है।।

और बातें ढ़ेर सारी , विज्ञान साबित कर दिया ।

बन्धन जरूरी की महत्ता , लोग को समझा दिया ।।

बंधन बिना संसार चलना , है कभी मुमकिन नहीं।

गर टूट जाये एक पल भी ,बिध्वंस रुक सकता नहीं।।

विज्ञान तो बतला रहा , हर चीज बंधन से बधी ।

एलेक्ट्रोन और प्रोटोन भी ,अपने ही बंधन से बँधी ।।

है अथाह शक्ति प्रेम में , झुकते हैं बँधकर लोग जिससे।

जो सर्वशक्तिमान होते, पडता है झुकना स्वयं उससे ।।

जिसने भी ये दुनियां बनाई , बाँधी जकड़ कर प्रेम से।

जल्द तो तोड़े न टूटता , यह भुजा के जोर से ।।

होती बहुत गहराई दिल की.

गहराई में अपनें ही दिल की , जब मनुज कोई डूब जाता ।

अनमोल, दुर्लभ रत्न कुछ, वह वहाँ से खोज लाता ।।

काफी अधिक सागर से ज्यादा , होती सदा गहराई इसकी ।

गर्भ में रहते छिपे , नवरत्न की आगार उसकी ।।

निकाल लेना ढ़ूढ़ कर , होता नहीं आसान इतना ।

प्रयत्न तो बहुतों किये , होते सफल पर लोग कितना??

कोई बौरा डूब कर , जाता है जिस गहराई तह तक ।

रत्न भी अनमोल उतना , ढ़ँढ़ पाता है वहाँ तक ।।

रत्न तो सर्वत्र पड़े हैं , सिर्फ उनको ढ़ूढ़ना है ।

चश्मा लगाना है उसे , जिससे दिखे जो ढ़ूढना है ।।

अच्छी जहाँ हर चीज होती , ना गन्दगी होती वहाँ क्या?

खिलते कमल जिस ताल में ,कीचड़ नहीं होती वहाँ क्या??

अच्छाई और बुराइयों से , मिल ये बनती जिन्दगी ।

वगैर एक दूजे बिना तो , नीरस ही लगती जिन्दगी।।

ढ़ूँढ़ लेता चीज वह , गहराई तक जो डूब जाता ।

अनावरण कर गूढ़ को , रहस्य उसका जान जाता ।।

ज्ञान की चक्षु से ओझल , होती नहीं कोई चीज है ।

हो बेनकाब , स्पष्ट दिखती , सामने हर चीज है ।।

मिलती उन्हें है दिब्य दृष्टि , जिस नाम से सब जानते।

दिखती उन्हें हर चीज उससे , लोग यह हैं मानते ।।

जाती पहुँच है ज्ञान-दृष्टि , पहुँचा जहाँ न कोई पहले।

देती दिखाई चीज वह भी , देखा न जिसको कोई पहले।।

देखा कभी था ‘सूरदास’ ,देखा न कोई आज तक ?

नयनों बिना चित्रण किया , किसने किया है आजतक??

दिब्य -दृष्टि लोग कहते , तो नहीं उसको कहीं ?

हो फर्क केवल नाम का , और तो कुछ भी नहीं ।।