(a)
लघु कृषक का हाल बुरा , दुखियों में दुखिया आज।
कृषक कहाने के चक्कर मे, करत न कोई काज ।।
करत न कोई काज स्वयं ,मजदूर करत सब काज।
झूठी शान बचाने खातिर, अपुन बिगाड़त काज ।।
(b)
अच्छा हो चुनाव लड़ें ,लड़ मुखिया बनल जाये ।
खिला पिला के मुर्गा दारू ,वोट बटोरल जाये ।।
कहीं जरूरत पडे़ अगर तो , नगदो बाँटल जाये ।
मुखिया बन कर आम क्या , गुठलियो बेंचल जाये।।
(c)
क्या करोगे पढ लिख कर , मूरख ही रह जाओगे ।
बेतन तो मँहगाई खायेगी,आयकर से पकराओगे ।।
करो दलाली जमकर भैया ,दौलत खूब बनाओगे ।
अगर गये बन ईमानदार ,करेप्सन में फँस जाओगे ।।
(d)
घूस न लेना आया जमकर, मूरख ही कहलाओगे।
गलत काम गर नहीं किये तो ,गाली जमकर खाओगे।।
बीबी बच्चे कष्ट सहेगे , फटेहाल रह पाओगे ।
समाज न तेरा कद्र करेगा ,गोबर गणेश कहललाओगे।।
(e)
चोरो की ही लोग बडाई , करते हैं जमकर के ।
सभी जानते माल ये सारा, आया चोरी कर के ।।
दौलत की ही चकाचौंध से,आँखें चौंधिया के ।
लूठ रहे लोभी जनता को ,अधा उसे बना के ।।
(f)
बस चमक देख अच्छा कह देना,धोखा खुद को देना है।
लावण्य देख आशिक हो जाना, फंदा में खुद फँसना है।।
चमकदार हर चीजें सारी , होती सभी न सोना है ।
बात जान फिर भी फंस जाते ,यही बात का रोना है।।
(g}
सब लोग जानते तोड् के पिंजडा, पंछी को उड़ जाना है।
कुकर्मो से पर बाज न आते, इसी बात का रोना है ।।
जाना है पर कब जाना , समय का हीं ठिकाना है ।
उधेड़ बुनों की सिलसिला में ,जीवन मर रह जिना है।।