न जानें सागर का जल इतना,खारा क्यों होता है ।
बहुमूल्य अनेकों रत्नों का ,आगार बृहद होता है।।
‘बडा होना तो अच्छा होता,बड़प्पन उससे भी अच्छा’।
चाहे जिसने कहा इसे ,है सत्य वचन लगता अच्छा ।
बड़ों में भरा बडप्पन हो तो , फिर उसका क्या कहना।
‘सोने पे सुहागा’कथन लोग का, है बिलकुल सच कहना ।।
जल नदियों से चलकर आता ,संग मिट्टी कचरे ले आता ।
छोड़ इसे बन वाष्प पुनः, पानी बन नदियों में आ जाता ।।
क्रम सदा चला करता रहता , सागर पर फर्क नहीं पड़ता।
नदियों जो भी आती लेकर, सब का भार वहन करता ।।
लुप्त सभी हो जाते इसमें, उफ तक यह कभी नहीं करता।
करता रहता सदा समाहृत, फिर भी स्वच्छ बना रहता ।।
बड़ों का यही बड़प्पन होता , अवगुण खुद में लय कर लेता।
स्वयं झेल कर कष्ट अनेकों, लोगों को सुखमय कर देता ।।
तुम हो रत्नों का आगार , तुझे रत्नाकर कहते लोग ।
गर्भ मे तेरे क्या क्या रहते, कहाँ जानते है हर लोग ।।
जिज्ञासु अब जान रहे हैं , कर रहे जानने का प्रयास ।
जो जानें अब हैं थोड़ा, पर भिडे हुए करके बिश्वास ।।
छिपे गर्भ में क्या क्या तेरे, भरे पड़े भंडार वहाँ ।
प्रकृति क्या दे रखी तुमको , कहाँ किसी को ज्ञात यहाँँ??
नदियाँ ही शायद आकर, मिट्टी संग नमक बहा लाती ।
नकक सागर में रह जाते ,जलवाष्प घटायें बन जाती ।।
अनवरत नमक सागर मे जा कर, जल को खारा कर देता ।बस कारण एक यही लगता ,जिससे जल खारा है होता ।।
हो तुम अथाह , तेरा थाह नहीं , कितनी तेरी गहराई है ।
जीव जन्तू से भरे पडे़ हो , कितनी तेरी समायी है ।।