क्यों होते मायूस बता , मौसम तो सदा बदलता है।
जो भीआता है दुनियाँ मेंं , लौट चला ही जाता है ।।
चक्र सदा ही गमन आगमन , का चलता रहता है।
तत्वों से मिश्रण बनते कुछ,पर पुनः तत्व बन जाता है।।
युगों युगों से दुनियाँ का, क्रम यह चलता रहता है।
शनै शनै सारी चीजों में , परिवर्तन होता रहता है।।
परिवर्तन की गति न ज्यादा , यह.धीमा होता है ।
बन्दर से मानव कब हो गये ,प्रतीत कभी क्या होता है??
मौसम की तो बात न पूछें, यह सदा बदलता रहता है।
ऐ प्रकृति तुझे धन्यवाद , तेरा कर्म निरंतर चलता है ।।
मौसम सारा रचना तेरी, जाड़ा ,गर्मी, सर्दी जो हो ।
क्रमिक रूप से सदा चलाते ,जैसी मर्जी तेरी जो हो।।
कभी कड़ाके की ठंढक तो ,कभी विरान लगती धरती।
कभी जलप्लावित करने का धुन, ढ़की जमीं फूलों से लगती।।
प्रकृति तूने फूल खिला कर , कितना सुन्दर काम किया ।
मानव उससे भी आगे बढ कर ,तेरा ‘बसंत’ क्या नाम दिया।।
नजर फेरिये जिधर ,उथर , फूल फूल दिखते हर ओर ।
मधुप गण मंडराते फिरते, गुण गुण करते हैं हर ओर ।।
मंद पवन खेतों से ले , पुष्प-गंध संग लाता है ।
इसी गंध की मादकता से ,मस्त सभी हो जाता है ।।
सभी मस्त हैं हो जाते , बहती बयार जब बासंती ।
नर-नारी ही नहीं अपितु , सब जीवों पर मस्ती छाती।।
पर मस्ती का यह आलम ,रहता न सदा ,बदल जाता ।
चक्र सदा मौसम का अपना , फिर है आगे बढ़ जाता ।।
आने जाने का नियम पुराना, मौसम तो आता जाता रहता।
कितने बसंत आये जीवन में, पर सदा तो कोई नहीं रहता।।