अब तो तालियाँ भी ,आदमी को देख लगते हैंं ।
बजाते लोग न यूँ ही, पैसे लेकर बजते हैं ।।
ये जो भीड़ दिखती लोग की , ऐसे नहीं दिखती।
खरीदे लोग ये होते , पैसे ले कर आते हैं ।।
बे-रोजगारी का जमाना, आगया ऐसा ।
बस थोडे ही पैसे में , बहुत से लोग मिलते हैं।।
जुटानें भीड़ की खातिर , दलालें घूमते फिरते ।
इन्हें गड्डी थम्हाने से , कहीं पर भीड़ लगते हैं।।
जो जितना माल डालेगें , लगेगी भीड़ भी उतनी ।
रंगदार वे कितनें बडे हैं , उसी से बात बनती है।।
शहर देखा नहीं जिसने , मौका मिल उन्हें जाता ।
भोजन ही नहीं ,रात पूरी ,देखने को डाँस मिलती है।।
कितना मजा मिलता , अनेकों लोग मिल जाते ।
गप्पे छाँटनें का एक , सुनहरा चाँस मिलता है ।।
लुटेरे लूट कर लाते , बेहद धन -दौलत ,सम्पदा ।
लुटाते बीच लोगों में , लोग सब टूट पड़ते हैं ।।
अगर आवाभगत के बाद भी,कोई जिद पकड़लेता।
फिर इन्हीं लुटेरों से उन्हें, जूते लात मिलते हैं ।।
जमाना आ गया कैसा , हुए बेशर्म कुछ ऐसा।
फेंक कर चाटते जो थूक भी ,मूँछें ऐंठ चलते हैं।।
संख्या रोज बढ़ती जा रही ,है लोग ऐसों की ।
जिन्हें तिरस्कार होनी चाहिए, सम्मान होते हैं ।।
शायद इसी युग को, कलियुग लोग कहते हों ।
सज्जन तिरस्कृत होते , दूर्जन कद्र पाते हैं ।।
जिसने भी कहा हो ,सच कहा, आज दुनियाँ में।
कौवे खा रहे मोती ,हंस तो ,दानें ही चुगते हैं ।।