ऐ प्रकृति , जवाब दुनियाँ मेंं तेरा कोई नहीं ।
मैं खोज कर तो थक गया,पर मिला अब तक नहीं।।
अपना जवाब स्वयं तुम हो ,अन्य है कोई नहीं ।
खोजता ही जा रहा , पर मिला अब तक नहीं ।।
मिलेगा भी वह कहाँ , कोई रहे भी तो सही ।
केवल अकेला है जगत मे ,अन्य तो कोई नहीं ।।
नाम तेरा तो अनेकों , कह कुछ पुकारे कुछ कहीं।
फर्क तुमको है न पड़ता , भेद तुममें है नहीं ।।
तुम राम हो ,घनश्याम हो , अल्ला , मुहम्मद जो सही।
रहते सदा तो साथ पर , दंगा तो करते हो नहीं ।।
छोटा कहूँ , कह दूँ बड़ा , तुमको नहीं लगता बुरा ।
बस प्रेम का ही प्रबल प्रेमी , क्या कोई मिलेगा दूसरा।।
अपनें मे केवल आप हो , तुम सा कोई है ही नहीं ।
पाओगे क्या ढ़ूँढ कर , तेरे सिवा कुछ है नहीं ।।
तुम ही बनाते या मिटाते , सर्वदा यह कर्म तेरा ।
क्या करेगा ,कौन कब , यह भी बताना कर्म तेरा।।
हम नाचते मरकट की नाई , पर सब ईशारा से तेरा ।
क्या कराते , कब कराते , होता ईशारा जब तेरा ।।
ब्यवधान मेरे काम में , हम सदा करते रहे ।
तुम बनाते चीज अच्छी , बिगाड़ देते हम रहे ।।
जानें क्यो बुरा तुमको न लगता ,समझ में आती नहीं।
उत्पाद तेरा हम तुम्हारे , इस प्यार से लगती नहीं ।।
माता पिता संतान को , अनहित तो कर पाते नहीं।
चीर कर ले ले कलेजा , माफ पर करती नहीं ।।
ऐ प्रकृति एहसान तेरा , सर्वदा हम पर रहा है ।
दुनियाँँ चलाते हो तुम्ही , शास्वत यही चलता रहा है।।