अनमोल पल इस वर्ष का,आयेथे आकर चल दिये ।
हँसते हँसाते या रुलाते,बन आज से कल चल दिये।।
जो भी हुआ ईतिहास बन कर,इस जगत मे रह गया।
बुरा किया ,अच्छा किया ,जो कुछ किया पर कर गया।।
जो भी किया बनकर कहानी, ही यहाँ पर रह गयी ।
अच्छी बुरी , जिसको लगी जो,चर्चा बनी ही रह गयीं।।
यह भी मिटेगी,पर कब मिटगी ,ब्यक्तित्व पर निर्भर करेगा।
गहरा छाप है कितना बनाया ,इस बात पर निर्भर करेगा।।
शाँन्त सा एक ताल में , पत्थर का टुकडा़ फेंक डालेंं ।
कितना तरंगित कर सका ,इस बात पर तो ध्यान डालें।।
पत्थर में जितना जोर होगा, तरंग भी उतना करेगा ।
स्तित्व भी उनका इसी , बात पर निर्भर करेगा ।।
युग युगों से सर्वदा यह , बात होती आई है ।
आई कितनी हस्तियों , अंकुश लगा क्या पाई है ।।
समय चलता जा रहा है , चलता सदा ही जायेगा।
पल भर भी ये रुकता नहीं , न रोक कोई पायेगा ।।
वर्ष मानव ने बनाया , या कहें समझा इसे है ।
गुजर गये वे वर्ष कितने , पता भी इसका किसे है।।
गर समय जो रूक गया , सृष्टि नहीं बच पायेगी ।
यह विश्व क्या रह पायेगा , समाँ ही क्या हो जायेगी।।
ब्यर्थ यह जानें न पाये , हर क्षण बड़ा अनमोल है।
अनमोल की कीमत समझ ,वरना ,मामला ही गोल है ।।