(01)
बिना सींचे , बिना रोपे , बन मे फूल खिल जाते ।
खुदा की करिश्मा है , वही सब कुछ किया करते।।
अज्ञानतावश भ्रम तो मानव , पाल ही लेते ।
कर्ता स्वयं होने का , सदा एहसास क्यो करते ??
(02)
मनुज अज्ञानताबस स्वयं , भ्रम कुछ पाल लेते हैं ।
अपने दुश्मनों को ही , हितैषी मान लेतै हैं ।।
दिल निर्मल हुआ करता , ये निश्छल भी होते है ।
बचे रह पायेंगे कब तक , ये धोखा खा ही जात हैं।।
(03)
हितैषी कौन है किसका , मुश्किल है बडा़ कहना ।
खास कर आज दुनियाँ मे , जटिल पहचान है करना।।
मुखौटा सब पहन रक्खे , अन्दर कौन क्या जाने ?
असम्भव जान ही पड़ता , उसे पहचान कर लेना ।।
Bahut hi sundar vichar……umda lekhan Sir.
पसंद करेंपसंद करें