हम नमन करते उसे.

हम नमन करते उसे , दुनियाँ बनायी है जिसे ।

पडता दिखाई तो नही ,पर ख्यालसबका है उसे।।

ब्यस्त होगे तुम बहुत , पर कष्ट कर मेरे लिए।

कर्तब्य क्या करना बता , भेजे गये जिसके लिये।।

अपनी ही डफली कुछ बजाते,पथ अलग अपना बताते।

देखासुना कोई नहीं, एक धर्म अलग अपना बताते ।।

करना भरोसा चाहिए, किस परसमझ आता नहीं ।

किसका कथन है सत्य देखा तो किसी ने है नहीं ।।

सब अटकलें केवल लगा कर, बात अपनी हैं बताते ।

मन में जिसे जो उचित लगता, सोंच अपनी हैं बताते ।।

चाहे बनाया कोई हो , सिर्फ मानव ही बनाया ।

सम्प्रदाय, जाति कुछ नहीं , पर सब को मानव ही बनाया।।

हिन्दू बनाया है नहीं , मुस्लिम नहीं उसने बनाया।

सिक्ख या कुछ और भी , ये कुछ नहीं उसने बनाया।।

शत्रु बडा मानव का सबसे, मानव ही खुद हैं हो गये ।

अनेकों खंड में खंडित किया , और करते रह गये ।।

विवेक का अपना उन्होंने ,इस्तेमाल अनुचित कर दिया।

जबरन ही सारे जीव पर , अधिकार अपना कर लिया ।।

बख्शा नहीं अपनों को उसने ,लालच लोभ इतना भर गया।

मानव ही मानव जीव का अब ,प्रवल शत्रु बन गया ।।

लोभ ,लालच का पुलिंदा ,बन कर के मानव रह गया।

सब जीव से उत्तम बताना , संदिग्ध सा बन रह गया ।।

जा रहा करते विखंडित ,करता कहाँ तक जायेगा।

निकृष्ट प्राणि जीव न जाने ,किस गर्त तक गिर जायेगा।।

सम्हलो ,सम्हालो, देर मत कर , अग्नि धधक गर जायेगा।

खाक ही हो जायेगा तो ,फिर सम्हल क्या पायेगा।।

बारूद पर बैठा हुआ है , सृष्टि का निर्माण सारा ।

होश में आ जाओ वरना , जायेंगे मिट जग तुम्हारा।।

मुक्तक.

(01)

बिना सींचे , बिना रोपे , बन मे फूल खिल जाते ।

खुदा की करिश्मा है , वही सब कुछ किया करते।।

अज्ञानतावश भ्रम तो मानव , पाल ही लेते ।

कर्ता स्वयं होने का , सदा एहसास क्यो करते ??

(02)

मनुज अज्ञानताबस स्वयं , भ्रम कुछ पाल लेते हैं ।

अपने दुश्मनों को ही , हितैषी मान लेतै हैं ।।

दिल निर्मल हुआ करता , ये निश्छल भी होते है ।

बचे रह पायेंगे कब तक , ये धोखा खा ही जात हैं।।

(03)

हितैषी कौन है किसका , मुश्किल है बडा़ कहना ।

खास कर आज दुनियाँ मे , जटिल पहचान है करना।।

मुखौटा सब पहन रक्खे , अन्दर कौन क्या जाने ?

असम्भव जान ही पड़ता , उसे पहचान कर लेना ।।