सज्जन तो सभी नहीं

आज जमाने का रुत देखो,क्या रहता है क्या दिखता।

अन्दर बाहर एक न होता,समझना अति मुश्किल होता।।

हैंं छद्म वेश मेंं लोग अधिक, पहचान नहीं आसां होता।

असली नकली कौन यहाँ, कहना अति मुश्किल होता।।

इस नकली के मेले में, पहचान अति कठिन होता ।

कीचड से कमल निकल आते,नहीं अद्भभुत क्याहै होता??

सच्चाई के राहों पर चलना,भी आसान नहीं होता ।

आसान नहीं यह अति कठिन, इन राहों से चलना होता।।

सीधा होता सच्चाई का पथ,नजर दूर तक है आता ।

होता टेंढा बेईमानी का पथ,नहीं दूर तक दिख पाता ।।

दूर समझ कर मानव मस्तिष्क, मन ही मन है थक जाता।

पथ दूर न दिखता बेईमानी का,अतः नहीं वह थक पाता।।

नहीं चाहता कोई जग मे , अधिक परिश्रम करना ।

सभी चाहते कम मिहनत कर, लाभ अधिक पा लेना ।।

हैं सीधे,भोले दिल पर ,अब बेईमानों का कब्जा ।

ईमानदारी से कुछ करने का , रहा न अब है जज्बा।।

नहीं कभी जग खाली होता, है सज्जन लोगों से ।

संख्या काफी कम हो सकती , तुलना मे दुर्जन से ।।

आते ही कुछ लोग जहाँ में ,अपना करतब करने को।

अपने कर्मों के बल से ही , जग को कुछ देने को ।।

संख्या तो कम होता उनका ,फिर भी ये काफी होते हैं।

अगिनत तारों मे एक सूरज, सब पर भारी ह़ोते.हैं।।

अन्दर से कुछ, बाहर कुछ दिखता, होता आज यही है।

जटा बढाये जो रहते हैं , सज्जन तो सभी नहीं हैं ।।