कृषक

ओ किसान भारतका जागो,जन-जनका अन्नदाता जागो।
ओ धरती के परमपुत्र, सो चुके बहुत,उठो,जागो।।

यों तुम तो जगते रहते, सर्दी गर्मी झेला करते ।
बारिश पानी या हो तुफान, परवाह नहीं थोडा करते।।

बादल झमझम बरसा करता,बिजली कड़कड़ करती रहती।
बर्जन घड़घड़ कर कौध कौध,दामिनियाँ करती रहती।।

ऊपर नभ से बारिश कापानी,दिन हो यारातें अधियाली।
बेफिक्र कृषक मिल जायेंगे, खेतो की करते रखवाली।।

उन्हें फिक्र नहीं दिनरात का,खेतों के कँटीले घाँस का।
चुभते पाँवोंमें कंकड़-पत्थर,नाफिक्र भूख या प्यास का।।

श्रम तुम सदा किया करते,सब का ही पेटभरा करते।
रात दिन आँधी पानी में,सजग हो सदा लगा रहते ।।

नभ बरसाये चाहे अनल,तवा सा तप जाये भूतल ।
धरती की सूखी आहर-पोखर,हो जाते निर्जल निर्जल।।

जाड़े में ढंढ़क लिये पवन, ढिढुरा देता जीवों का तन।
बिच्छू सा डंक लगाता रहता,करता रहता हरदम बेचैन।।

पर कृषक नहींउनसे रूकता,निज कर्म नहीं छोड़ा करता
बेफिक्र उसे झेला करता,उफ तक नहीं किया करता ।।

कृषक सैनिक का एक कर्म,दोनों स्वधर्म किया करता।
भरता एक उदर सबों का,एक दुश्मन से लड़ता रहता।।

दोनों ही सदा डटे रहते,दिन-रात का फिक्र नहीं करते।
चौकस तो दोनों ही रहते, बाधाओं से खेला करते ।।

ये दोनों हैं रक्षक मेरे, जिनके बल खाते सोते हैं ।
भविष्य सुरक्षित नहींहैइनकी,ये सदा उपेक्षित रहते हैं।।

ध्यान नहीं सरकार की इनपर,ये अपने हाल पे होते हैं।
अर्पित कर औरों पर जीवन,खुद अपने हाल पेरोते हैं।।

दोनों का सम्मान कहाँ, मिहनतकस का पहचान कहाँ?
जो करते भुला दिये जाते,आडम्बर का सम्मान यहाँ।।

सोंच जरा क्या होता है, ईमान यहाँ बेचारा है ।
अंजाम बुरा होगा इसका, बेईमानों का वारा न्यारा है।।

हुआ था पी०एम०एक महान,लालबहादुर उनका नाम।
जिसने नारा दे रखा,’जय जवान , जय किसान-।।

भ्रष्टाचारी भयभीत हुए, कर डाला उसने ऐसा काम।
षंडयंत्र रचा अन्दर अन्दर ,करवाया उनका काम तमाम।।

 

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