इस बेरहम दुनियाँ में , आसान नही हे जीना ।
अपनाही भरोसा करना, औरों का कौन ठिकाना।।
ये दुनियाँ मतलब पर चलती,ऐसों का कौन ठिकाना।
कब रंग बदल देगी अपना,यह भी मुश्किल है कहना।।
जबतक मतलब सधता उनका,बनकर मित्र रहेगें ।
मतलब सध जाता बात खत्म,मुँह फेर के वे चल देगें।।
लेहाज नहीं होगा उनको,हमदोनों मित्र कभी थे ।
छाया सा चलते साथ सदा,होते न कभी अलग थे।।
फेरेगें वे मुख ऐसा, पहचान न पहले था ऐसा ।
आज करेगें बात आप से,अपरिचित मिलते हो जैसा।।
नीयत किसकी कब क्या होगी ,ये नहीं जानता कोई।
हिंसक सा ब्यवहार करेगा,मानव हिंसक बन कोई।।
अर्धज्ञान पा कर मानव, पूरा इन्सान बना है क्या?
मानव रूप रहा पर, मानव पूर्ण बना है क्या ??
सदाचार झचकता जाता अब, दुराचार के आगे ।
सज्जन को ही झुकना पड़ता,अब दुर्जन के आगे।।
आज सिखाता विद्वानों को, अनपढ़ और गंवार।
प्रजातंत्र में बन जाती जब, उनकी ही सरकार ।।
अनपढ को मिलता राज सिंहासन,बिद्वजन चँवर डुलाते
करना पड़ता काम उन्हें सब, जो गंवार फरमाते ।।
प्रजातंत्र का यही तकाजा, संविधान यह कहता ।
मुँड गिनाने के युग में ,तिकडम से सब कुछ चलता ।।
इन्सान बनाकर भेजा है ,इन्सान सा जीवन जीना ।
कल्याण करो कर सको अगर ,कर सकते तूँ जीतना।।