ऐ चाँद तूँ बेकार है , बेकार तेरी चाँदनी।
लोग कहते इसलिए,बस चार दिन की चाँदनी।।
चार दिन केवल चमकते,फिर अँधेरी रात है ।
कब घटोगे,कब बढ़ोगे ,ये सोंचने की बात है।।
चाँद सा मुखडा़ बता कर, लोग करते प्यार हैं।
क्या कहेगें आशिकों को,मरने को खुद तैयार हैं।।
फूल सा कोमल नहीं, सुनते की तूँ पाषाण हो।
दूर से दिखते हो प्यारा ,देते चमक का मार हो।।
वह भी चमक अपनी नही ,तुम कहीं से पाये हो।
दर्पण सरीखे सिर्फ तुमने, प्रवर्तित कर पाये हो ।।
भ्रम में पड़े हैं लोग कब से,पर समझ अब पाये हैं।ष्
वह भी अभी पूरा नहीं, थोड़ा समझ ही पाये हैं ।।
चाँदनी अपनी न तेरी, उधार ले कर आये हो ।
बच्चों से लेकर बृद्ध तक, सबलोग को भरमाये हो।।
‘चाँद मामा’लोग तुमको ,कब से कहते आये हैं ।
रिश्ता पुराना ,और गहरा, को निभाते आये है ।।
चाँद मामा तुम हो शीतल, प्यार करते लोग तुमसे।
स्नेह की बरसात करते, तृप्त होती चित्त तुमसे ।।
तुम लुटा कर चाँदनी, सुकून देते हो सबों को ।
आकर तुरत ही लौट जाकर,दिल दुखाते हो सबों को।।
नाराज हो कर लोग उससे , बोलते बेकार तुमको ।
दिलसे करते प्यार ज्यादा,अनुपस्थिति खलती है उनको।।
आराम देकर छीन लेना, क्या उचित यह काम है ।
हरलोग को खलता यही, देता यही इल्जाम है ।।द