नहीं कोई तुम सा आली.

नयनन हों मानो मधुप्याली,चंचल चितवन आली-आली।
तूँ जहाँ रहे मधुमास वहीं ,कोकिलकंठी मधुरस वाली।।

हर अदानिराली है तेरी, दर्शक को झट बिंधनेवाली ।
जो देख लिया मदहोश हुआ,तेरै नैना हैं जादूवाली।।

तेरा कनक रंग का गौड़ बदन आभाषित करने वाली।
तम तुझे देखकर छिपजाये,जुल्फें नागिन मणियोंवाली।।

जुल्फें सावन की काली-घटा,दामिनियाँ संग चलने वाली।
घटाटोप रातों को भी, जब चाहो शुभ्र करने वाली।।

तुम आयी कहाँसे पता नहीं,नहीं धरती की रहने वाली।
आई हो क्या स्वर्ग लोक से,धरा तरण करने वाली ।।

धरतीवासी स्वागत करता,,सुर को आकर्षित करनेवाली।
ऐ देवलोक की अप्सरा, गौडा़ग कमल नयनों वाली।।

तुम नाच नचा दी दुनियाँ में,दुनियाँ तेरी ही दीवानी।
जलनें को पतंगे पहुँच गये खुद,ढ़ूंढ़ रहे अपनी पाली।।

अपनें हाथों से गढ़ा खुदा,खुद अपनी सभी कला डाली।
रचा तुझे है बडे प्रेम से,हरकण पर खुद नजरें डाली।।

तुमसा आकर्षक कोई नहीं, जो.तुलना में आनेवाली।
खुदा बनाया तुझे अनोखी, ऐ मनमोहक मतवाली ।।

जो तुझे देखता,ठग जाता,नजरों में वो बसनेवाली ।
खो देता सुध-बुध अपना, डाका दिल पर देनेवाली।।

नयनन हों मानों मधुप्याली,चंचल चितवन आली आली।
तूँ रहे जहाँ मधुमास वहीं, कोकिल-कंठी मधुरस वाली।।

ऐ चाँद तूँ बेकार है, बेकार तेरी चाँदनी.

ऐ चाँद तूँ बेकार है , बेकार तेरी चाँदनी।
लोग कहते इसलिए,बस चार दिन की चाँदनी।।

चार दिन केवल चमकते,फिर अँधेरी रात है ।
कब घटोगे,कब बढ़ोगे ,ये सोंचने की बात है।।

चाँद सा मुखडा़ बता कर, लोग करते प्यार हैं।
क्या कहेगें आशिकों को,मरने को खुद तैयार हैं।।

फूल सा कोमल नहीं, सुनते की तूँ पाषाण हो।
दूर से दिखते हो प्यारा ,देते चमक का मार हो।।

वह भी चमक अपनी नही ,तुम कहीं से पाये हो।
दर्पण सरीखे सिर्फ तुमने, प्रवर्तित कर पाये हो ।।

भ्रम में पड़े हैं लोग कब से,पर समझ अब पाये हैं।ष्
वह भी अभी पूरा नहीं, थोड़ा समझ ही पाये हैं ।।

चाँदनी अपनी न तेरी, उधार ले कर आये हो ।
बच्चों से लेकर बृद्ध तक, सबलोग को भरमाये हो।।

‘चाँद मामा’लोग तुमको ,कब से कहते आये हैं ।
रिश्ता पुराना ,और गहरा, को निभाते आये है ।।

चाँद मामा तुम हो शीतल, प्यार करते लोग तुमसे।
स्नेह की बरसात करते, तृप्त होती चित्त तुमसे ।।

तुम लुटा कर चाँदनी, सुकून देते हो सबों को ।
आकर तुरत ही लौट जाकर,दिल दुखाते हो सबों को।।

नाराज हो कर लोग उससे , बोलते बेकार तुमको ।
दिलसे करते प्यार ज्यादा,अनुपस्थिति खलती है उनको।।

आराम देकर छीन लेना, क्या उचित यह काम है ।
हरलोग को खलता यही, देता यही इल्जाम है ।।द