बड़ी अजीब है दुनियाँ, बडे अजीब हैं सबलोग यहाँ?
मैं और मेरा में ही डूबे, रहते हैं सब लोग यहाँ ।।
ब्यस्त सभी रहते दिन-रात,सोंचा करते बस अपनी बात।
स्वार्थ साधनें में बाधक पर, तत्क्षण कर देते आघात ।।
उचित अनुचित का ध्यान न देगें,अन्य न सोंचेंगेये बात।
हिंसक जीवों से भी बदतर ,बन जाता मानव का जात।
सिर्फ पेट भरने के खातिर, करता हिंसक है आघात ।
मानव अपना कुकर्म छिपाने,खातिर भी करता आघात।।
भर जाये गर पेट उन्हें, हिंसक आघात नहीं करता ।
बैठ कहीं हत्या करनें की ,साजिश रचा नहीं करता ।।
ये साजिश रचने वाला ,कोई और जीव नहीं होता ।
‘बडा़ भाग्य मानुष तन पावा’साजिश सिर्फयही करता।।
फिर भी मानव जीव को, सबसे श्रेष्ठ कहा जाता ।
अपने मुख से सिर्फ बडाई, अपनी ही करता रहता ।।
यों सोंचें तो तुच्छ यही है,सारे ही जीवों से ज्यादा ।
ब्यर्थ प्रकृति ने बना दिया ,ज्ञानी सब जीवों से ज्यादा।।
क्या प्रकृति परेशान न होगी ,मानव जीव बना कर।
भष्मासुर सा नहीं कार्य ,कर रहा यहाँ पर आ कर।।
जानें क्यों लोग इसे कहते ,उत्तम सारे जीवों.में ।
ब्यवधान खडा करता रहता ,प्रकृति के हर कामों में।।
काट-काट कर जंगल को , विरान किये देते हैं ।
अपनें लालच में सबको, परेशान किये देते हैं ।।
क्या होगा परिणाम, लोग को अवगत की जाती है।
पर लोभी मानव बुद्धि, समझ कहाँँ पाती है ।।
कूकर्म करेगें मानव केवल ,प्रतिफल सब को होगा ।
सचर अचर जितनें होगें ,फल उन्हें भुगतना होगा ।।