सत्पथ पर चलता जा.

जो जलता,जलता ही रहता,दुनियाँ बढती है जाती ।
नहीं फिक्र करती है किसीका,निज पथपर चलती जाती।

भरा हौसला होता जिनमें, बढ़ता अविरल है जाता।
बाधायें तो आती रहती,बेखौफ चला है ही जाता।।

बाधायें अवरोधक बन कर,जीवन में हर का ही आता।
शौर्य देख बढऩे वाले का,पथछोड अलग है हो. जाता।।

कर पाता नहीं विरोध उसे,जयकार उसी का है करता।
जानेवाला बडे शान से, ताने सीना बढ़ जाता ।।

लोग डराते ही उनको , जो उनसे है डर जाता।
भयभीत न हो जो डटजाते,तोखुद ही भागखडा होता।।

सत्पथ पर जो चलना सीखा,नहीं किसी से है डरता।
निर्भीकता से बढता जाता,नहीं किसी का भय खाता ।।

सच्चा बीर वही है होता,जो चले राह सच्चाई का ।
अंतिम जीत उसी की होती,जो करता कार्य भलाई का।।

सचमुच बीर जो है होता,दंभ नहीं वह है भरता ।
अहित न करता औरों का,ना गलतमार्ग पर है चलता।।

अनुशासित पथगामी होता,कभी न इससे है डिगता ।
चलता और चलाता इसपर,कभीनहीं यह राह भटकता।।

भटक गया जो राहों से,गणतब्य नहीं वह पा सकता।
जाना उन्हें कहाँ रहता ,पर जानें कहीं पहुँच जाता।।

गणतब्य नहीं पाता अपना ,इरादा जो पक्का रखता।
धुन एक सिर्फ उनका रहता,कुछऔर नहीं सोंचा करता।।

कौन देख क्या बोल रहा,नहीं फिक्र वह है करता ।
सुन लेता उनकी बातों को,अमल नहीं पर है करता ।।

जलनेवाले जला करेंगे, वह अपना काम किया करता ।
ध्यान नहीं जो देता उनपर,अपना गणतब्य वही पाता ।।

3 विचार “सत्पथ पर चलता जा.&rdquo पर;

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