तुम हो सूरज आसमान का,मैं अदना टिमटिम तारा।
रौशन सारी दुनिया तुमसे, तुलना तुम से क्या मेरा।।
जीवन का आधार तुम्हीं हो,सचर अचर सबका प्यारा।
भेदभाव के बिना निरंतर, देते रहते सदा सहारा ।।
सारी दुनियाँ रौशन तुम से, बिन तेरे छाये अंधियारा।
तू केन्द्र-बिन्दु अपनें मंडल का,संचालित है तुम से सारा।
बिना तुम्हारे सभी कल्पना, रह जाये केवल कोरा ।
बिन तेरे साकार न होगा, जीवन का कोई सपना ।।
ऊर्जा का संचार सबों मे , तुम से ही होता पूरा ।
बिना तुम्हारे नहीं करेगा, कोई भी इसको पूरा ।।
हो श्रोत तुम्ही सारी ऊर्जा का, संचालित तुमसे सारा।
नहीं पता है कौन नचाता, नाच रहा पर जग सारा।।
है कौन शक्ति अदृश्य, रहता जिसका सदा इशारा ।
क्याआवासहै सचही उसका,मंदिर^मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारा।।
जो असाध्य है ब्यर्थ साधने,का क्यों है प्रयास तुम्हारा।
क्यों विभक्त खंडो में करना,क्या दुष्कर्म ये नहीं तुम्हारा?
ज्ञान अधूरा होता घातक, आज हाल है यही हमारा।
सब पर हो बर्चस्व हमारा, होता सतत प्रयास हमारा।।
होगा कितना खुद विशाल, हो लय जिसमें ब्रह्मांड हमारा।
कैद उन्हें कैसे कर सकता, मंदिर,मस्जिद, चर्च,गुरूद्वारा।
जो जी चाहे मार्ग पकड़ चल,जो दिल करे पसंद तुम्हारा।
किसे पड़ी है रोके तुमको, मर्जी तेरी, मग भी तेरा।।
अगर रची कोई प्रकृति, उसे शत बार नमन मेरा
एहसान चुकाऊँ कैसे तेरा, लदा है जो हम सब पर तेरा।।
Bahut hi khubsurat kavita.
तुम हो सूरज आसमान का,मैं अदना टिमटिम तारा।
रौशन सारी दुनिया तुमसे, तुलना तुम से क्या मेरा।।
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धन्यवाद.
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