कहता रहा कब से, थकता जा रहा हूँ अब ।
असर पडता नहीं तुम पर,कहीं बहरे नहीं तो तूँ??
आँखें देखती तेरी नहीं, क्या देख कर सब कुछ?न हिलती तक जुबाँ तेरी, –कहीं गूंगे नही तो तूँ ??
न सुनते आर्तनाद,चित्कार,उठे असकों के दर्द का जो
सब क्या लुट गयी संवेदना, पाषाँ नहीं तो तूँ ??
मानव आये हो बन कर,सबों से श्रेष्ठ जीवों मे ?
करनें कर्म श्रेष्ठों का सदा, कतराते नहीं तो तूँ??
बडा़ अजीब होता है जगत मे, जीव मानव भी ।
भरे विवेक होते हैं अधिक, बात को मानते तो तूँ??
मानव हो, रहो मानव,बनों मत अन्य चौपाया ।
महज कुछ ज्ञान सेहै श्रेष्ठता,नहीं क्या जानते हो तूँ??
दिखाओ कर्म कर ऐसा,जगत जो याद कर रखें।
युगों तक नाम लेते है, बात को जानते तो तूँ??
यों ,कूकर्म जो करते,उन्हें भी जानते सब हैं।
पर कुख्यात होते वे, उसे भी जानते हो तूँ।।
मानव सब नहीं जीते , केवल स्वयं की खातिर।
औरों के लिये कुछ लोग जीते, /मानते तो तूँ??
जो जीते और के खातिर,नहीं इन्सान वे केवल।
उन्हें इन्सान से उपर है दर्जा,मानते तो तूँ ??
नमन उसको सभी करते ,अपने सर झुकाते हम।
श्रद्धा का सुमन-माला,न उसको डालते हो तुम??
बहुत ही अच्छा।
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