मधुर-स्वप्न.

मैं सोया था,नींद लगी थी,कोई आ झकझोड़ जगा डाला।
ले रहा लुफ्त था मधुर स्वप्न काआकर उसे मसल डाला।।

संजोये थे कितने सपनें, अरमान भरे थे सीने में ।
बडे सजा कर थे रखे,तब लुफ्त बहुत था जीने में।।

भरी रहेगी हरदम खुशियां,कभी त्याग न जायेगी ।
आयी है मेरे जीवन में, जीवन भर साथ निभायेगी।।

कभी त्याग कर चल देगी,नहीं कभी ऐसा सोंचा ।
मुख मोड़ विदा ले लेगी हम से,नहीं कभी ऐसा सोंचा।।

विधि का विधान तो नहीं जानता,कोई भी संसारी ।
रचा इसे जो जो स्वयं जानता ,होगी क्या गति हमारी।।

स्वप्न मधुर जो देखा करता ,है अपने जीवन में ।
हासिल उसे वही कर पाता ,है अपने जीवन मे।।

बाधाएँ आती रहती ,पथ रोक खडी हो जाती है।
अग्नि परीक्षा तभी मनुज का ,तत्क्षण हो जाती है।

सीना तानें भिड़ जाने को ,ठोके ताल खडा होता ।
बाधाएँ खुद घबडा उससे,खुद ही भाग खडा होता ।।

जो डरती उसे डराती दुनियाँ, यह दस्तूर पुराना है।
कमजोर मेमने को कुछ कहना,यह एकमात्र बहाना है।।

जो डरजाते वह मरजाते,फिर सोंच भला क्या करना है।
निडर रहो ,सत्कर्म करो, सन्मार्गों से चलना है ।।

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