सोचो क्या करवा सकती

क्यों समाजके चयनित प्रतिनिधि,क्या खबरतुम्हारी आतीहै
काले कुकृत्य की भरी कहानी,जन जन को मिल जाती है।।
खुद की ही नजरों में तुम,नहीं गिरे क्या होते हो ?
इस समाचार को देख नहीं क्या,पानी पानी होते हो??

क्या अंतरात्मा नहीं तेरी,धिक्कार लगाती है तुमको?
क्या करतूतें तेरी काली, शर्म न करवाती तुमको ??

कैसे उनकी धिक्कारें ,चुपचाप सहन कर लेते हो?
शर्म हया कुछ तो रक्खो,क्यों ताखे पर रख देते हो??

करके कितना बिश्वास तुम्हें, अपना मतदान किया होगा?
शरीफ समझ मातायें बहनें, तुमको चयन किया होगा??

शिला दिया क्या तूने उसका,कुछ तो सोंच थोडा देखो।
घृणित कार्य कैसा कर डाला,स्वयं सोंच कर तो देखो।।

कितनों का बिश्वास हनन का,तूँने पामर काम किया ?दिया भरोसा था सबको,पर उल्टा सब काम किया ??

नहीं करेगा माँफ तुझे, इस दुनियां की कोई अदालत।
चाहे कर ले कोई आकर,किसी लोक से कोई वकालत।।

तूँने तो सारी जगती का, सम्मान हनन कर डाला है ।
पूरी नारी जाती की ही ,चीर हरण कर डाला है ।।

एक नारी की चीर हरण, महाभारत करवा सकती ।
तो इतनों की चीर हरण, सोंचो क्या करवा सकती??

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